Kailash Kund Yatra 2024: कैसे हुई कैलाश कुंड यात्रा की शुरुआत, नाग देवता से है इसका कनेक्शन
धार्मिक मान्यता है कि कैलाश कुंड में नागराज वासुकी का वास माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार वासुकीनाथ मंदिर को बसोहली के राजा भूपतपाल के द्वारा बनवाया गया था। इस धाम में देवों के देव महादेव का मूल निवास माना जाता है। कैलाश कुंड (Kailash Kund Yatra 2024) को वार्षिक धार्मिक पर्यटन यात्रा के रूप में भी जाना जाता है। आइए जानते हैं कैसे हुआ इस मंदिर का निर्माण?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kailash Kund History: सनातन धर्म में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है। श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शनों के लिए धार्मिक यात्रा करते हैं। सभी धार्मिक यात्राओं को महत्वपूर्ण माना जाता है। कई धार्मिक यात्रा वर्षभर चलती हैं, लेकिन कुछ यात्रा कुछ समय के लिए शुरू होती हैं। इन यात्राओं में कैलाश कुंड वासुकी नाग यात्रा भी शामिल है। धार्मिक मान्यता है कि कैलाश कुंड (Kailash Kund Significance) में नागराज वासुकी का वास है। इस यात्रा में हर साल अधिक संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह जिले में वासुकी नाग मंदिर स्थित है। ऐसे में चलिए जानते हैं इस यात्रा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में।
कैसी है कैलाश कुंड यात्रा?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, कैलाश कुंड में भगवान शिव का मूल निवास माना गया है। इस बार कैलाश कुंड वासुकी नाग यात्रा की शुरुआत 29 अगस्त 2024 से होगी। कैलाश कुंड तक पहुंचने के लिए लोगों को 25 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। इस यात्रा में 6 से 7 घंटे का समय लगता है। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को खड़ी चढ़ाई का सामना करना पड़ता है। इसके बाद वह कैलाश कुंड के दर्शन कर पाते हैं। श्रद्धालु कुंड के शीतल जल में स्नान कर वासुकीनाथ मंदिर के दर्शन का लाभ उठाते हैं।यह भी पढ़ें: Janmashtami 2024: द्वारकाधीश मंदिर में विराजित हैं ठाकुर जी के ये 16 चिन्ह, जानिए इनका महत्व
कैसे हुआ मंदिर का निर्माण
पौराणिक कथा के अनुसार, साल में 1629 बसोहली के राजा भूपतपाल थे। एक बार जब वह भद्रवाह से वापस लौट रहे थे, तो उस दौरान मार्ग में पड़ने वाले कैलाश कुंड (Nag Devta Connection With Kailash Kund) को पार करने के लिए वे कुंड में घुस गए। इस कुंड में नाग रहा करते थे। कुंड के बीच में पहुंचने के बाद उन्हें नागों ने घेर लिया। ऐसे में राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ। इसके पश्चात राजा ने नागों को सोने के कुंडल देकर अपनी गलती की माफी मांगी। तब जाकर राजा कुंड से बाहर निकला और वहां पर वासुकीनाथ का मंदिर बनाने का फैसला लिया। इसके बाद से ही कैलाश कुंड यात्रा शुरू हुई है।
यह भी पढ़ें: द्वारका समुद्र से थोड़ी दूर पर स्थित इन 5 कुओं में क्यों है मीठा पानी, जानें हजारों साल पुराने कुओं के बारे में अस्वीकरण: ''इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है''।