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एक मंदिर ऐसा भी जहां हैं ग्यारह शिवलिंग

बिहार के मिथिला के मधुबनी में स्थापित है विश्व का एकमात्र एकादश रूद्र महादेव का मंदिर। बिहार के मधुबनी जिले के मंगरौनी ग्राम में ऐसा ही अद्भूत श्री श्री 110

By Edited By: Fri, 29 Nov 2013 02:40 PM (IST)
एक मंदिर ऐसा भी जहां हैं ग्यारह शिवलिंग

बिहार के मिथिला के मधुबनी में स्थापित है विश्व का एकमात्र एकादश रूद्र महादेव का मंदिर।

बिहार के मधुबनी जिले के मंगरौनी ग्राम में ऐसा ही अद्भूत श्री श्री 1108 एकादश रूद्र महादेव मंदिर है, जो मधुबनी बस स्टैंड से मात्र 3 किलोमीटर दूर है।

कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जब यहां आये थे, तो एक ही शक्ति वेदी पर भगवान शंकर के ग्यारह अलौकिक रूप को देखकर भावविह्वल हो गये और कह उठे की इस तरह का मंदिर विश्व में एकमात्र है, जहां तांत्रिक विधि से शिव के ग्यारहों लिंग रूपों को स्थापित किया गया है।

पंडित बाबा आत्माराम बताते हैं की महादेव का मंत्र ऊं नम: शिवाय है, लेकिन इस मंदिर के संस्थापक तांत्रिक पंडित मुनीश्वर झा (1896-1986) ने इस पंच अक्षर के स्थान पर ग्यारह अक्षर का मंत्र तैयार किया ऊॅ नम: शिवाय, एकादश रुद्राय।

इस मंत्र के 100 बार जाप करने से 1200 जाप का फल मिलता है क्योंकि 100 बार ऊॅ नम: शिवाय, का और 1100 बार एक साथ ऊॅ एकादश रुद्राय के जाप से अर्थात कुल 1200 बार जाप हो जाता है। यहां आकर भक्त को आध्यात्मिक सुख मिलता है।

10 मई से 21 मई 2000 तक एक ही शक्ति वेदी पर स्थापित इन शिवलिंगों पर विभिन्न तरह की आकृति उभरने लगे, एन आकृतियों का बनना अभी भी जारी है। सभी शिवलिंगों में उभरे चित्रों की जानकारी-

1) महादेव - 30 जुलाई 2001 को अर्धनारीश्वर का रूप प्रकट हुआ। ये कामख्या माई का यह भव्य रूप है। पांचवें सोमवारी के दिन गणेश जी गर्भ में प्रकट हुए इ शिवलिंग का यह रूप स्पष्ट रूप से नज़र आती है।

शिव- प्रभु श्री राम ने कहा था की मैं ही शिव हूं। इस लिंग में सिंहासन का चित्र उभरा है, जो प्रभु श्रीराम का सिंहासन दर्शाता है।

रुद्र:- भय को हरने वाले इस लिंग में बजरंगवली पहाड़ लेकर उड़ रहे हैं बड़ा ही अद्भुत चित्र प्रकट हुआ है।

शंकर- गीता के दशवें अध्याय में श्रीकृष्ण ने कहा की मैं ही शंकर हूँ । इस लिंग में श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र, बांसुरी और बाजुबंध स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

नीललोहित: - जब महादेव ने विषपान किया था, तब इनका नाम नीललोहित: पड़ गया था। इस लिंग में सांप और? का अक्षर प्रकट हुआ है।

ईशान: - हिमालय पर निवास करने वाले महादेव जिसे केदारनाथ कहते हैं इ 9 जुलाई 2001 सावन के पहले सोमवार को राज राजेश्वरी का रूप प्रकट हुआ और पंचमुखी शिवलिंग प्रकट हुआ है। इसके अलावा ओमकार एवम महाकाल की गदा भी दिखाई पड़ती है।

विजय: - इस शिवलिंग में छवि बन रही है आकृति अभी स्पष्ट नहीं है।

भीम: - महादेव का एक रूप भीम भी है। इस शिवलिंग में गदा की छवि उभरकर सामने आई हुई है।

देवदेव: - यह लिंग सूर्य का रूप है इस शिवलिंग में लिंग के निचे दो भागों में सूर्य की किरणे फुटकर शीर्ष में मिल रही है। साथ ही त्रिशूल का भी चित्र दीखता है।

भवोद्भव: - इस लिंग में उमा-शंकर की आकृति प्रकट हुई हैं।

कपालिश्च: - महादेव का एक रूप बजरंगवली भी है इ और यह लिंग धीरे धीरे लाल हो रहा है।

इस एकादश रूद्र महादेव मंदिर के पुजारी बाबा आत्माराम के अनुसार प्रसिद्ध तांत्रिक मुनीश्वर झा ने सन 1953 में इस मंदिर की स्थापना की सभी शिव लिंग काले ग्रेनाईट पत्थर के हैं, जो 200 वषरें से अधिक पुराने हैं। प्रत्येक सोमवार की शाम को दूध, दही, घी, मधु, पंचामृत, चन्दन आदि से इन शिवलिंगों का स्नान एवं श्रिंगार होता है। सोमवार की शाम को यहां अद्भुत छटा देखने को मिलती है प्रत्येक सोमवारी को यहां भंडारा का आयोजन होता है। महाप्रशाद खाने मात्र से शरीर के सभी कष्ट दूर हो जाता है जो भक्त कामना से यहां आते हैं उनकी कामना पूर्ण होती है। इस मंदिर के दायीं और ग्रेनाईट और अष्टधातु का बना राधेश्याम मंदिर है जिसमे विष्णु का दशावतार रूप है तथा श्री विघायंत्र है जिसका काम है लक्ष्मी सरस्वती को बराबर रखते हुए लक्ष्य को प्राप्त करना प्राय: इस यन्त्र का दर्शन भी अन्यत्र दुर्लभ है।

सामने विशाल पवित्र सरोवर है बगल में विष्णु पद गया क्षेत्र है। ऐसी मान्यता है की जो व्यक्ति अपने पितरो का पिंड दान करने गया नहीं जा पाते, उनके पितरों को यहां पिंड दान करने से मुक्ति मिल जाती है। यहीं पर बगल में पंडित मुनीश्वर झा की समाधी है। यहां महाकाल का मंदिर है, उसके बगल में पीपल का विशाल वृक्ष है। महादेव मंदिर में भगवान शिव पार्वती की एक दुर्लभ मूर्ति भी प्रतिष्ठित है, जिसमे महादेव की बायीं जांघ पर पार्वती बैठी हुयी है। महादेव का बयां हाथ पार्वती के कमर पर है और दाहिना हाथ उनके ओष्ठ पर है। इस मूर्ति की बायीं तरफ बसहा और बगल में महाकाली, महालक्ष्मी , महासरस्वती यन्त्र एवं विष्णु पादुका है।

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