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Jagannath Rath Yatra 2022: आज से निकलेगी जगन्नाथ रथ यात्रा, जानें इससे जुड़ें कुछ रोचक तथ्य

Jagannath Rath Yatra 2022 पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है। 1 जुलाई से शुरू होने वाली इस रथ यात्रा को देश-विदेश से लोग देखने आते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा में भगवान के साथ-साथ बड़े भाई बलराम औप बहन सुभद्रा का भी रथ होता है।

By Shivani SinghEdited By: Updated: Fri, 01 Jul 2022 03:28 PM (IST)
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Jagannath Rath Yatra 2022: जानिए जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में रोचक तथ्य
नई दिल्ली, Jagannath Rath Yatra 2022: हर साल आषाढ़ माह में ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से भव्य यात्रा का आयोजन किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, आज से रथ यात्रा निकलेगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण का एक रूप जगन्नाथ भी है। जिसका अर्थ है जग के स्वामी। हिंदू धर्म में जगन्नाथ यात्रा का काफी खास महत्व है। रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का भी रथ शामिल होता है। जगन्नाथ यात्रा शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक पहुंचती है। जहां पर वह पूरे 7 दिनों तक रहते हैं। बता दें कि जगन्नाथ यात्रा शुरू होने के 15 दिन पहले से ही जगन्नाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। जानिए जगन्नाथ यात्रा से जुड़ी रोचक बातें।

108 घड़े के पानी से कराया जाता है स्नान

रथ यात्रा शुरुआत होने के 15 दिन पहले यानी ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के जिन भगवान जगन्नाथ को पूरे 108 घड़े पानी ने नहलाया जाता है, जिसे सहस्त्रधारा स्नान के नाम से जानते हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि भगवान को जिस कुएं के पानी से नहलाया जाता है। उसे फिर एक साल के लिए बंद कर दिया जाता है।

14 दिन का एकांतवास

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, 108 घड़े ठंडे पानी से नहाने के बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं। ऐसे में वह 14 दिनों के लिए एकांतवास में चले जाते है। इस दौरान मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और भगवान की सेवा एक बच्चे की तरह की जाती है।

तीनों के होते है अलग-अलग रथ

बता दें कि जगन्नाथ यात्रा के दिन भगवान का ही भव्य रथ नहीं होता है, बल्कि बड़े भाई बलराम जी के साथ बहन सुभद्रा का भी रथ भव्य होता है। यह तीनों की अपनी मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर जाते हैं।

नीम की लकड़ी से बनती है मूर्तियां

आपको ये जानकर शायद आश्चर्य होगा कि भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ बलराम जी और बहन सुभद्रा की मूर्तियां नीम की लकड़ी से बनाई जाती हैं। नीम की लकड़ी को भगवान के रंग के अनुसार चुना जाता है। जैसे भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला है, तो ऐसी नीम की लकड़ी चुनी जाती है जो सांवले रंग की हो। इसके साथ ही बलराम जी और सुभद्रा का रंग गोरा है इसलिए इनके लिए हल्के रंग की नीम की लकड़ी चुनी जाती है।

रथ का निर्माण किया जाता है खास लकड़ियों से

बता दें कि रथ का निर्माण हर साल किया जाता है। सभी रथों का आकार अलग-अलग होता है। हर एक रथ का निर्माण नारियल की लकड़ी से किया जाता है।

हर रथ का है अपना एक नाम

जगन्नाथ जी के रथ का आकार बड़ा होता है। इसमें लाल और पीले रंग का इस्तेमाल होता है। इस रथ को नंदीघोष या गरुध्यव कहा जाता है। सबसे पहले देवी सुभद्रा का रथ होता है जिसे दर्पदलन या पद्म रथ कहते हैं। इसके बाद बलराम जी का रथ होता है, जिसे तालध्वज कहते हैं। इस रथ का रंग लाल और हरा होता है। अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।

Pic Credit- Instagram/jharkhandinfoportal

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'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

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