Janmashtami 2024: द्वारकाधीश मंदिर में विराजित हैं ठाकुर जी के ये 16 चिन्ह, जानिए इनका महत्व
जो साधक द्वारका मंदिर का दर्शन करने जाते हैं वह ठाकुर जी के श्रीविग्रह को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और इसे देखकर धन्य महसूस करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान द्वारकाधीश जी के स्वरूप में 16 विशेष चिन्ह हैं तो आइए आज हम आपको इन खास चिन्हों के महत्व के बारे में बताते हैं जो इस प्रकार है।
किशन प्रजापति, द्वारका। आज देश-दुनिया में जगत के नाथ भगवान श्री कृष्ण का जन्म हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। जो भी व्यक्ति द्वारका दर्शन के लिए जाता है वह ठाकुर जी के श्रीविग्रह को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है और इसे देखकर धन्य महसूस करता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान द्वारकाधीश जी के स्वरूप में 16 विशेष चिन्ह हैं। आइए आज हम आपको इन खास चिन्हों के महत्व के बारे में बताते हैं और ये 16 चिन्ह द्वारकाधीश जी के स्वरूप में क्यों होते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि डॉ. निर्भयराम पुजारी ने वर्षों पहले पुराणों, शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया था, जिसके बारे में उनके भतीजे और द्वारकाधीश जी मंदिर के पुजारी दीपक भाई ठाकुर ने दिलचस्प जानकारी दी है, जिसका शब्दश: वर्णन हमने यहां प्रस्तुत किया है।
दीपक भाई पुजारी ने बताया कि द्वारका के मंदिर में ही विराजित ठाकुर जी का श्रीविग्रह है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण यानी द्वारकाधीश जी सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं। ठाकुर जी के श्रीअंग में 16 चिन्ह हैं। जिसमें अंग, श्रीअंग, उपांग, आयुध और पार्षद चार प्रकार के प्रतीक होते हैं।
श्रीअंग
ठाकुर जी का श्यामवर्ण भगवान का पूर्ण स्वरूप है वह नीलम पत्थर मेसे बनी मूर्ति है
उपांग (कौस्तुभमणि)
ठाकुर जी के श्रीविग्रह के उपांग में कौस्तुभमणि है। जब देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से कौस्तुभमणि नामक बहुमूल्य हार निकला। यह हार भगवान नारायण के अलावा किसी अन्य के पहनने योग्य नहीं था। इसलिए यह हार भगवान विष्णु नारायण को अर्पित कर दिया गया। वह द्वारकाधीश जी के गले में कौस्तुभमणि का हार है।भृगुऋषि लांछन
तीनों देवताओं यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सर्वश्रेष्ठ कौन है, इसका निर्णय लेने के लिए ऋषियों ने द्वारकाधीशजी की परीक्षा ली। भृगुऋषि ने द्वारकाधीश जी की छाती पर पैर से प्रहार किया। जिसका प्रतीक चिन्ह श्रीवक्ष लांछन का चिन्ह है।