मनाकुला विनायगर मंदिर की प्रतिमा है अनोखी, समुद्र में डुबाने पर भी लौट आई
पुडुचेरी स्थित गणपति के मनाकुला विनायगर मंदिर के बारे में प्रसिद्ध है की 1666 में यहां फ्रांसीसियों के आने से भी पहले इस मंदिर का निर्माण हुआ था।
By Molly SethEdited By: Updated: Wed, 20 Dec 2017 09:00 AM (IST)
मंदिर में चित्रित है गणपति की संपूर्ण कहानी
अपने र्निमाण के समय के हिसाब से मनाकुला विनायगर मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर की दीवारों पर प्रसिद्ध चित्रकारों ने गणेश जी के जीवन से जुड़े दृश्य चित्रित किए हैं, जिनमें गणेश जी के जन्म से विवाह तक की अनेकों कथायें छिपी हुई हैं। शास्त्रों में गणेश के जिन 16 रूपों की चर्चा है वे सभी मनाकुला विनायगर मंदिर की दीवारों पर नजर आते हैं।इस मंदिर का मुख सागर की तरफ है इसीलिए इसे भुवनेश्वर गणपति भी कहा गया है। तमिल में मनल का मतलब बालू और कुलन का मतलब सरोवर होता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार पहले यहां गणेश मूर्ति के आसपास ढेर सारी बालू थी, इसलिए ये मनाकुला विनायगर कहलाने लगे।
जुड़ी है अनोखी कहानीइस मंदिर के साथ एक अनोखी कहानी जुड़ी है। कहते हैं पुडुचेरी में फ्रांसीसी शासन के दौरान कई बार इस मंदिर पर हमले के प्रयास हुए और कई बार मंदिर में स्थापित गणपति प्रतिमा को समुद्र में डुबोया गया, पर हर बार यह अपने स्थान पर वापस आ जाती थी। कई बार मंदिर की पूजा में व्यवधान डालने की कोशिश भी की गई, लेकिन गणपति का यह मंदिर अपनी पूर्ण प्रतिष्ठा के साथ आज भी शान से खड़ा हुआ है।
सोने की भरमारइस मंदिर में टनों सोना मौजूद है। करीब 8,000 वर्ग फुट क्षेत्र में बने इस मंदिर की आंतरिक साज सज्जा में भी स्वर्ण जड़ा है। साथ ही मुख्य गणेश प्रतिमा के अलावा 58 तरह की गणेश मूर्तियां स्थापित की गई हैं। मंदिर की सभी दीवारों पर प्रसिद्ध चित्रकारों ने गणेश जी के जीवन से जुड़े छोटे तथ्य सजाये हैं। मंदिर में गणेश जी का 10 फीट ऊंचा भव्य रथ भी है। इसमें भी लगभग साढ़े सात किलोग्राम सोने का इस्तेमाल हुआ है। हर साल विजयादशी के दिन गणेश जी इसी रथ पर सवार होकर विहार करते हैं। हर साल अगस्त-सितंबर महीने में मनाया जाने वाला ब्रह्मोत्सव यहां का मुख्य त्योहार है, जो 24 दिनों तक चलता है।