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Somnath Jyotirlinga Temple: जानें कैसे हुआ था सोमानाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित, पढ़ें पौराणिक कथा

Somnath Jyotirlinga Temple स्वयंभू शिव शंकर के पूरे देश में 12 पवित्र ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। इनमें से पहला ज्योतिर्लिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित किया गया था जिसका नाम स

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 20 Jul 2020 08:54 AM (IST)
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Somnath Jyotirlinga Temple: जानें कैसे हुआ था सोमानाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित, पढ़ें पौराणिक कथा
Somnath Jyotirlinga Temple: स्वयंभू शिव शंकर के पूरे देश में 12 पवित्र ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। इन्हें प्रकाश लिंग भी कहा जाता है। इनमें से पहला ज्योतिर्लिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित किया गया था जिसका नाम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। इसे पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना गया है। शिवपुराण के अनुसार, जब दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रस्त होने का श्राप दिया था। तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप किया था। इससे चंद्रमा का श्राप से मुक्ति मिली थी। यहां के ज्योतिर्लिंग की कथा का पुराणों में में भी वर्णन किया गया है जिसकी जानकारी हम आपको यहां दे रहे हैं।

दक्ष प्रजापति की सत्ताइस पुत्रियां थीं। उन सभी की शादी चंद्रदेव से कराई गई थी। लेकिन चंद्रमा को सबसे ज्यादा प्रेम रोहिणी से था। इसी के चलते दक्ष की बाकी कन्याएं दु:खी रहती थीं। जब उन्होंने अपने पिता चंद्र देव के इस व्यवहार की जानकारी दी तो दक्ष प्रजापति ने चंद्र देव को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं मानें। ऐसे में क्रोध में आकर दक्ष ने चंद्र देव को क्षय रोग से ग्रस्त होने का श्राप दे दिया। इसके कारण ही चंद्र देव तुरंत ही क्षयग्रस्त हो गए थे। उनके ग्रस्त होने पृथ्वी पर उनका सारा कार्य रुक गया।

चंद्र देव बहुत दु:खी हुए और प्रार्थना करने लगे। उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता समेत वसिष्ठ और ऋषिगण भी उपस्थित हो गए। चंद्र देवता की मदद और उनके उद्धार के लिए वो सभी पितामह ब्रह्माजी के पास पहुंच गए। ब्रह्मा जी ने सभी बातें सुनीं। उन्होंने कहा कि चंद्रमा को इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की आराधना करनी होगी। साथ ही मृत्युंजय का जाप भी करना होगा। शिव की कृपा से चंद्र का शाप नष्ट हो जाएगा।

चंद्र देव ने मृत्युंजय का दस करोड़ बार जाप किया। इन्होंने भगवान की आराधना का कार्य संपन्न किया। शिव जी ने प्रसन्न होकर चंद्र को अमरत्व का वरदान दिया। साथ ही यह भी कहा कि चंद्र का शाप-मोचन भी होगा और दक्ष के वचनों की रक्षा भी। उन्होंने कहा कि कृष्णपक्ष में तुम्हारी हर दिन एक-एक कला क्षीण होगी। लेकिन शुक्ल पक्ष आते ही एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। यह पूर्णिमा तक चलता रहेगा। प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें चंद्रतत्व प्राप्त होता रहेगा। यह वरदान चंद्रमा को मिलते ही सभी लोकों के प्राणी खुश हो गए और फिर से चंद्र देव का कार्य पहले जैसा शुरू हो गया।

चंद्र देव ने सभी देवताओं के साथ मिलकार श्राप से मुक्त होने के बाद मृत्युंजय भगवान्‌ से प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि प्राणों से मुक्ति के बाद वो माता पार्वती के साथ हमेशा के लिए यहां निवास करें। इस प्रार्थना को शिव ने स्वीकार कर लिया। वो ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तब से ही यहां रहने लगे। बता दें कि सोम, चंद्रमा का ही एक नाम है औऱ शिव को चंद्रमा ने अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी। इसी के चलते ही इसका नाम सोमनाथ पड़ा।