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जानें, काशी के मां अन्नपूर्णा मंदिर के बारे में सबकुछ

जब भगवान शिवजी काशी आए तो ब्रह्माजी का मस्तक उनके करतल से अलग हो गया। उस समय भगवान शिवजी को ब्रह्म वध से मुक्ति मिल गई। यह जान भगवान शिवजी बेहद प्रसन्न होकर काशी नगर में बसने की इच्छा रख भगवान विष्णु से काशी नगरी मांग ली।

By Umanath SinghEdited By: Updated: Tue, 21 Dec 2021 11:15 AM (IST)
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जानें, काशी के मां अन्नपूर्णा मंदिर के बारे में सबकुछ
धार्मिक शहर काशी की गिनती दुनिया के सबसे पुराने शहरों में होती है। इस शहर का वर्णन सनातन, बौद्ध और जैन धर्मों के ग्रंथों में निहित है। सनातन धार्मिक ग्रंथों की मानें तो दैवीय काल में यह सर्वप्रथम भगवान विष्णु का नगर था। कालांतर में जब भगवान शिवजी ने ब्रह्मा जी क्रोधित होकर पांचवा मस्तक धर से अलग कर दिया, तो ब्रह्माजी का मस्तक शिवजी के करतल से चिपक कर रह गया। शिवजी के कई प्रयासों के बावजूद ब्रह्माजी का मस्तक शिवजी के करतल से चिपक रहा। एक बार जब भगवान शिवजी काशी आए, तो ब्रह्माजी का मस्तक उनके करतल से अलग हो गया। उस समय भगवान शिवजी को ब्रह्म वध से मुक्ति मिल गई। यह जान भगवान शिवजी बेहद प्रसन्न होकर काशी नगर में बसने की इच्छा रख भगवान विष्णु से काशी नगरी मांग ली। उसी समय से यह नगर बाबा की नगर कहलाया। प्राचीन काल से काशी में भगवान शिवजी की मंदिर स्थापित है। वर्तमान समय में काशी विश्वनाथ मंदिर अवस्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर के कुछ दूरी पर माता अन्नपूर्णा मंदिर है। आइए, इस मंदिर के बारे में सबकुछ जानते हैं-

माता अन्नपूर्णा की कथा

किदवंती है कि एक बार पृथ्वी पर अन्न की कमी हो गई। इससे पृथ्वी पर हाहाकार मच गया। आधुनिक समय में वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले समय में दुनिया को अन्न प्रलय से गुजरना पड़ सकता है। उस समय पृथ्वी वासी ने त्रिदेव की उपासना कर उन्हें अन्न प्रलय की जानकारी दी। इसके पश्चात, आदिशक्ति मां पार्वती और भगवान शिव पृथ्वी लोक पर प्रकट हुए। प्रकृति की अनुपम रचना पर रहने वाले लोगों को दुखी देखकर मां पार्वती ने अन्नपूर्णा का स्वरूप ग्रहण कर भगवान् शिव को दान में अन्न दिया। वहीं, भगवान शिव ने अन्न को पृथ्वी वासियों में वितरित कर दिया। कालांतर में अन्न को कृषि में उपयोग किया। तब जाकर अन्न प्रलय समाप्त हुआ।

माता अन्नपूर्णा मंदिर

बाबा की नगरी काशी में विश्वनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर माता अन्नपूर्णा मंदिर है। इस मंदिर में माता अन्नपूर्णा की पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि प्रतिदिन विधि पूर्वक मां अन्नपूर्णा की पूजा करने से गृह में विपरीत परिस्थिति में भी अन्न की कमी नहीं होती है। शास्त्रों में निहित है कि अन्न का सम्मान और ध्यान रखना चाहिए। भूलकर भी अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए। साथ ही जितनी भूख हो, उतना ही भोजन परोसना चाहिए। कभी अन्न को फेंकना नहीं चाहिए। अन्न को बरबाद करने से मां अन्नपूर्णा रूष्ट हो जाती हैं। इससे घर की लक्ष्मी भी चली जाती है और घर में दरिद्रता का वास होने लगता है। इस मंदिर में कई अनुपम छवि हैं, जिनमें माता अन्नपूर्णा रसोई में हैं। वहीं, प्रांगण में कई प्रतिमाएं अवस्थित हैं। इनमें मां काली, पार्वती, शिवजी सहित कई अन्य देवी देवताएं हैं। हर वर्ष अन्नकूट उत्स्व के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धलु मंदिर आकर माता के दर्शन करते हैं। वहीं, रोजाना बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद श्रद्धालु माता के दर्शन करने जरूर आते हैं।

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