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Taj-ul-masajid Mosque: इस शहर में है भारत की सबसे बड़ी मस्जिद, प्रवेश द्वार से कुवैत सम्राट का जुड़ा है कनेक्शन

वर्तमान समय में उपलब्ध साक्ष्य के अनुसार 1871 में ताज उल मस्जिद का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। वहीं सन 1901 में शाहजहां बेगम का निधन हो गया। उस समय शाहजहां बेगम की बेटी ने मस्जिद (Kuwait King Hamidullah Khan) बनाने का कार्य अपने जीवन में जारी रखा। आजादी के पश्चात सन 1958 में ताज उल मस्जिद बनकर तैयार हो गई।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 04 Jul 2024 09:29 PM (IST)
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India's Largest Taj-ul-masjid: ताज उल मस्जिद का इतिहास (Image Credit: bhopal.nic.in)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Taj-ul-masajid History: मध्य प्रदेश अपनी धार्मिक धरोहर के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में सभी धर्मों के कई प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर, खंडवा में ओंकारेश्वर मंदिर हैं। वहीं, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए प्रमुख स्थल सांची का स्तूप है। जबकि इस्लाम धर्म के लिए सबसे प्रमुख स्थल भोपाल में है। इस शहर में भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। इस मस्जिद का नाम ताज-उल-मस्जिद है। यह मस्जिद न केवल भारत में बल्कि एशिया में भी सबसे बड़ी है। इस बारे में इतिहासकारों का कहना है क्षेत्रफल की दृष्टि से यह मस्जिद दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। इससे पहले राजधानी दिल्ली में स्थित जामा मस्जिद देश की सबसे बड़ी मस्जिद थी। लेकिन क्या आपको पता है कि ताज-उल-मस्जिद का प्रमुख प्रवेश द्वार का निर्माण कुवैत सम्राट ने अपनी पत्नी की याद में करवाया था ? आइए, इस मस्जिद के बारे में सबकुछ जानते हैं-

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मस्जिद का इतिहास

इतिहासकारों की मानें तो ताज उल मस्जिद का अभिप्राय यानी मतलब मस्जिदों के ताज से है। इस मस्जिद का निर्माण जामा मस्जिद के तर्ज पर हुई है। ऐसा कहा जाता है कि शाहजहां बेगम के कार्यकाल में मस्जिद का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। तत्कालीन समय में मस्जिद बनकर तैयार नहीं हो पाई थी। इसके बाद शाहजहां बेगम की बेटी ने ताज उल मस्जिद को बनवाने का सपना देखा।

वर्तमान समय में उपलब्ध साक्ष्य के अनुसार 1871 में मस्जिद का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। वहीं, सन 1901 में शाहजहां बेगम का निधन हो गया। उस समय शाहजहां बेगम की बेटी ने मस्जिद बनाने का कार्य अपने जीवन के अंत काल तक जारी रखा। आजादी के पश्चात सन 1958 में ताज उल मस्जिद बनकर तैयार हो गई। तत्कालीन समय में मस्जिद निर्माण कार्य की देखरेख सलमान खान नदवी ने की। वहीं, मस्जिद निर्माण कार्य में लगने वाली लागत इमरान खान नदवी ने दी। वहीं, भारत सरकार की सहायता से यह मस्जिद सन 1971 में बनकर तैयार हो गई।

प्रवेश द्वार और कुवैत सम्राट का संबंध

इतिहासकारों की मानें तो कुवैत सम्राट ने पत्नी के निधन यानी मृत्यु के बाद उनकी यादगारी में ताज उल मस्जिद के प्रवेश द्वार का निर्माण करवाया था। प्रवेश द्वार का निर्माण सीरियाई वास्तु शैली में की गई है। इस प्रवेश द्वार पर लगने वाली लागत कुवैत सम्राट द्वारा दी गई थी। मस्जिद में लाल रंग की मीनारें हैं। वहीं, मस्जिद गुलाबी रंग की है। ताज उल मस्जिद के चारों ओर दीवार है। जबकि, मस्जिद के मध्य में तालाब है। कुवैत सम्राट द्वारा निर्मित प्रवेश द्वार दो मंजिला है।

कैसे पहुंचे ताज-उल-मस्जिद ?

नमाजी देश की राजधानी दिल्ली से यात्रा के तीनों साधनों के माध्यम से भोपाल पहुंच सकते हैं। भोपाल स्थित राजा भोज हवाई अड्डा से ताज-उल-मस्जिद की दूरी लगभग 10 किलोमीटर है। दर्शनार्थी हवाई अड्डा से निजी वाहनों के जरिए आसानी से ताज-उल-मस्जिद पहुंच सकते हैं। वहीं, श्रद्धालु रेल यात्रा कर भी भोपाल पहुंच सकते हैं। रेलवे स्टेशन से ताज-उल-मस्जिद की दूरी 4 किलोमीटर है। वहीं, प्रदेश के अन्य शहरों से बस सेवा से ताज-उल-मस्जिद पहुंच सकते हैं।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।