इस मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में मिलते हैं भगवान बुद्ध, हजारों वर्ष पुराना है इसका इतिहास
हर वर्ष वैशाख पूर्णिमा तिथि पर बुद्ध जयंती (Lord Buddha lying posture) मनाई जाती है। इस दिन भगवान बुद्ध की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। इतिहासकारों की मानें तो वैशाख पूर्णिमा तिथि पर भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसी तिथि पर ज्ञान की भी प्राप्ति हुई थी। वहीं वैशाख पूर्णिमा पर भगवान बुद्ध पंचतत्व में विलीन हो गए थे।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Lord Buddha Temple: भगवान बुद्ध हर्यक वंश के समकालीन थे। तत्कालीन समय में बिम्बिसार मगध के राजा थे। उनके शासनकाल में बौद्ध धर्म का उदय हुआ। हालांकि, भगवान बुद्ध को परिनिर्वाण बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु के शासनकाल में प्राप्त हुआ। भगवान बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की है। सनातन धर्म में भगवान बुद्ध को जगत के पालनहार भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। हालांकि, दशावतार में उनका वर्णन नहीं है। भगवान बुद्ध ने चार आर्य सत्य का उपदेश जगत को दिया। इनमें चौथे सत्य यानी दुख निवारण के लिए अष्टांग मार्ग का पालन करने की सलाह दी है। कोई भी व्यक्ति भगवान बुद्ध के उपदेशों या अष्टांग मार्ग का पालन कर सत्य को जान सकता है। देशभर में भगवान बुद्ध के कई विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि देश में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां भगवान बुद्ध लेटे हुए मुद्रा में दर्शन देते हैं ?
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भगवान बुद्ध का जीवन
भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईस्वी पूर्व में शाक्य गणराज्य की राजधानी लुम्बिनी में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था। शुद्धोधन शाक्य गणराज्य के क्षत्रिय राजा थे। वहीं, मां का नाम महामाया था। रानी महामाया का संबंध कोलीय वंश से था। भगवान बुद्ध के जन्म के सात दिन बाद ही उनका यानी रानी महामाया का निधन हो गया था। उस समय भगवान बुद्ध का पालन-पोषण उनकी मौसी महाप्रजापती गौतमी ने किया था। भगवान बुद्ध को बाल्यावस्था में सिद्धार्थ कहकर पुकारा जाता था। जन्म काल से ही सिद्धार्थ को भगवान से अनुराग था। युवावस्था में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा से हुआ। विवाह उपरांत एक पुत्र की प्राप्ति हुई। भगवान बुद्ध के पुत्र का नाम राहुल था। पुत्र की प्राप्ति के एक वर्ष बाद भगवान बुद्ध ने गृह त्याग दिया।
ज्ञान की प्राप्ति
भगवान बुद्ध को कई वर्षों की कठिन साधना और तपस्या के पश्चात बिहार स्थित बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इतिहासकारों की मानें तो भगवान बुद्ध का जन्म वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ है। इस दिन यानी वैशाख पूर्णिमा तिथि पर ही भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई और परिनिर्वाण भी प्राप्त हुआ था। अतः हर वर्ष वैशाख पूर्णिमा पर बुद्ध पूर्णिमा भी मनाई जाती है। ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने न केवल बोधगया में बल्कि देश के कई हिस्सों में जाकर उपदेश दिया। तत्कालीन समय में बौद्ध सेवकों की बढ़ती संख्या को देख बौद्ध धर्म की स्थापना की गई।
महापरिनिर्वाण
भगवान बुद्ध ने पूर्व से महापरिनिर्वाण की भविष्यवाणी कर दी थी। निर्धारित तिथि पर भगवान बुद्ध ने 80 वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में शरीर का त्याग किया। आसान शब्दों में कहें तो 483 ईस्वी पूर्व में भगवान बुद्ध को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस स्थान पर वर्तमान समय में महापरिनिर्वाण मंदिर है।
महापरिनिर्वाण मंदिर
यह मंदिर उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में स्थित है। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा है। महापरिनिर्वाण मंदिर में स्थित प्रतिमा की ऊंचाई 6.1 मीटर है। यह प्रतिमा बलुआ पत्थर से बनी है। इसमें भगवान बुद्ध पश्चिम दिशा की ओर देख रहे हैं। इतिहासकारों की मानें तो महापरिनिर्वाण के लिए पश्चिम दिशा शुभ होता है। मंदिर प्रांगण में ही एक शिलालेख है। इस शिलालेख का निर्माण बुद्ध के शिष्य हरिबाला ने करवाया था। देश और दुनिया से रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए आते हैं।
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