Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Maha Shivratri 2023: शिव और पार्वती की ज्योति से विद्यमान हुए थे मल्लिकार्जुन, जानें इसकी पौराणिक कथा

भारत में स्थापित भगवान के 12 ज्योतिर्लिंग दुनियाभर में काफी मशहूर है। यहां हर साल कई श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। महाशिवरात्रि के मौके पर बात कर रहे हैं इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों की। आज जानेंगे आंध्र प्रदेश के मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के बारे में-

By Harshita SaxenaEdited By: Harshita SaxenaUpdated: Wed, 08 Feb 2023 11:00 AM (IST)
Hero Image
जानें मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा और महत्व

नई दिल्ली। Maha Shivratri 2023: भगवान शिव कई लोगों के आराध्य देव हैं। उनके भक्त हर साल काफी धूमधाम से महाशिवरात्रि का त्योहार मनाते हैं। इस दिन लोग भोलेनाथ की पूजा-अर्चना कर उनके लिए व्रत भी रखते हैं। इतना ही नहीं इस दिन ज्यादातर लोग मंदिर जाकर भगवान शिव के आगे माथा टेकते हैं। हिंदू धर्म में महाशिवरात्री का अपना विशेष महत्व है। इस दिन भोलेनाथ की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। इस साल 18 फरवरी को यह त्योहार मनाया जाएगा। इस खास मौके पर हम आपको बता रहे हैं 12 ज्योतिर्लिंगों के जुड़ी प्रचलित पौणारिक कथाओं के बारे में। तो इस कड़ी में आज बात करेंगे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की।

आंध्र प्रदेश के स्थित मल्लिकार्जुन

आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है। भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग जिस शैल पर्वत पर स्थापित है, उसे दक्षिण के कैलाश के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर का खासियत यह है कि यहां भगवान शिव और माता पार्वती के संयुक्त रूप दर्शन होते हैं। शिवरात्रि के दिन यहां के दर्शन करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही यहां पूजा-पाठ करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि हर साल यहां कई भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं। तो आइए जानते हैं क्या है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ा पौराणिक इतिहास और इस मंदिर का महत्व।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का नाम दो शब्दों मल्लिका और अर्जुन से मिलकर बना है। इसमें मल्लिका का अर्थ माता पार्वती और अर्जुन का तात्पर्य भगवान शिव से है। वहीं, इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा की बात करें तो कहा जाता है कि इसका संबंध शिव-पार्वती और उनके दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेशजी से है। वेद-पुराणों की मानें तो एक बार गणेश जी और कार्तिकेय जी इस बात पर झगड़ रहे थे कि कौन पहले विवाह करेगा। इस बात का निष्कर्ष निकालने के लिए शिव जी ने कहा कि दोनों में से जो भी पहले पृथ्वी का चक्कर पूरा करेगा, उसका विवाह सबसे पहले कराया जाएगा। पिता की यह बात सुनते ही कार्तिकेय जी पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने चले गए। लेकिन भगवान गणेश से अपनी सूझबूझ का इस्तेमाल करते हुए अपने माता-पिता की परिक्रमा की।

माता-पिता से रुष्ट हुए कार्तिकेय

इस तरह गणेश की इस प्रतियोगिता के विजेता बन गए और गणेश जी विवाह पहले कराया गया। लेकिन जब कार्तिकेय जी वापस लौटे तो गणेश जी विवाह पहले होता देख माता-पिता से क्रोधित होकर क्रोंच पर्वत चले गए। इस पर सभी देवी-देवताओं से उनसे वापस कैलाश लौटने का आग्रह किया, लेकिन कार्तिकेय जी ने किसी की नहीं मानी। पुत्र वियोग में दुखी माता पार्वती और भगवान शिव जब स्वयं उन्हें मनाने क्रोंच पर्वत पहुंचे, तो कार्तिकेय और दूर चले गए। अंत में पुत्र के दर्शन के लिए भगवान शिव ने ज्योति रूप धारण किया और माता पार्वती भी इसी ज्योति में विराजमान हो गईं। तभी से इसे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।