Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Mahashivratri 2023 Special: जब अधर्म का अंत करने के लिए धरती को चीरकर निकले थे बाबा महाकाल

Mahashivratri 2023 प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन शिव मंदिरों में शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है साथ ही कई भगवान शिव की विधिवत पूजा की जाती है।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Thu, 09 Feb 2023 05:18 PM (IST)
Hero Image
Mahashivratri 2023 जानिए महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुडी कथा और कुछ रोचक बातें।

नई दिल्ली, अध्यात्मिक डेस्क | Mahashivratri 2023, Mahakaleshwar Jyotirlinga (Ujjain): 18 फरवरी 2023, शनिवार के दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित महाशिवरात्रि पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। महाशिवरात्रि पर्व के दिन शिव मंदिरों में शिवभक्त लाखों की संख्या में पूजा-पाठ और जलाभिषेक के लिए उमड़ते हैं। वहीं इस विशेष दिन पर 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। बता दें कि इन सभी 12 ज्योतिर्लिंग में उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के दर्शन को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस स्थान को पृथ्वी का नाभिस्थल भी कहा जाता। बता दें कि इस मंदिर के शिखर से कर्क रेखा पार करती है। आइए जानते हैं महाकालेश्वर मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और भस्म आरती का कारण।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga Katha)

शिव पुराण के अनुसार अवंती नामक शहर में कई शिवभक्त वास करते थे। यहां रहने वाले लोग भगवान शिव की आस्था में हर समय लीन रहते थे। इसलिए महादेव को भी इस शहर से खास लगाव था। एक बार दूषन नामक दैत्य ने भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। वह अहंकार में चूर होकर लोगों पर आक्रमण करने लगा। दूषण ने ब्राह्मणों और आम लोगों को पूजा-पाठ नहीं करने के लिए कहा। दैत्य के आतंक से परेशान होकर लोगों ने भोलेनाथ से रक्षा की प्रार्थना की।

अपने भक्तों की व्यथा सुनकर भोलेनाथ दूषण पर अत्यंत क्रोधित हुए। सर्वप्रथम उन्होंने दैत्य को चेतावनी दी। लेकिन जब चेतावनी के बाद भी वह नहीं रुका तब अधर्म के नाश के लिए देवाधिदेव महादेव ने धरती को चीरते हुए, महाकाल रूप धारण कर एक ही हुंकार से दूषण को भस्म कर दिया। इसके बाद भक्तों ने भगवान महाकाल को इसी स्थान पर विराजमान होने की प्रार्थना की। अपने भक्तों की प्रार्थना सुन भगवान महाकाल इसी स्थान पर आसीन हो गए। यही कारण है कि इस स्थान का नाम महाकालेश्वर रखा गया।

महाकालेश्वर भस्म आरती का कारण (Mahakaleshwar Bhasma Aarti)

शिव पुराण में यह भी बताया गया है कि जब भगवान महाकाल ने दूषण दैत्य का भस्म किया था, तब उसकी राख से अपना श्रृंगार किया था। तभी से बाबा महाकाल के भस्म आरती की परम्परा शुरू की गई थी। प्रत्येक दिन यह आरती भगवान शिव को निद्रा से जगाने के लिए सुबह 4 बजे की जाती है और आरती में प्रयोग किए जाने वाले भस्म को गाय के गोबर, शमी, पीपल, बैर के पेड़ की लकडियां, अमलतास, पलाश और बड़ को मिलाकर तैयार की जाती है।

महाकालेश्वर मन्दिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें 

  • महाकाल मन्दिर के गर्भगृह में भगवान शिव के समस्त परिवार- माता पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित है।

  • बताया जाता है कि महाकाल मंदीर में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग तीन अलग-अलग रूपों में स्थापित हैं। सबसे ऊपर नागचंद्रेश्वर हैं, मध्य में ओम्कारेश्वर और सबसे नीचे महाकालेश्वर स्थित हैं।

  • महाकाल मंदिर के निकट ही माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक हरसिद्धि माता का मंदिर भी है।

  • डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।