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Mahashivratri 2023 Special: जब रावण की एक गलती से स्थापित हुए श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, पढ़िए पौराणिक कथा

Mahashivratri 2023 भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन का विशेष महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आज हम बात करेंगे भगवान शिव नौंवे ज्योतिर्लिंग की और जानेंगे इससे जुड़ी कथा।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Wed, 15 Feb 2023 12:05 PM (IST)
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Mahashivratri 2023 पढ़िए श्री बैद्यनाथ धाम से जुड़ी कथा और कुछ अन्य जानकरी।

नई दिल्ली, अध्यात्मिक डेस्क | Mahashivratri 2023, Baidyanath Jyotirlinga Katha: वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष महाशिवरात्रि पर्व 18 फरवरी 2023, शनिवार के दिन धूमधाम से मनाया जाएगा। हिन्दू धर्म में महाशिवरात्रि पर्व के दिन भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन और उनकी पूजा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति इस दिन इन बारह ज्योतिलिंग में से किसी एक के भी दर्शन करता है, उसका जीवन सफल हो जाता है। आपको बता दें कि साधक द्वारा घर बैठे भी पूजा के समय द्वादश ज्योतिर्लिंग का स्मरण करके भगवान शिव की उपासना करने से कई प्रकार के दोष और संकट दूर हो जाते हैं। आज हम बात करेंगे भगवान शिव के नौवें ज्योतिर्लिंग बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की। आइए जानते हैं बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा।

श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के उत्पत्ति की कथा (Baidyanath Jyotirlinga Katha in Hindi)

किवदंतियों के अनुसार एक बार लंकापति रावण हिमालय में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रहा था। रावण भगवान शिव का ध्यान आकर्षित करने के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए अपना एक-एक सिर काटकर शिवलिंग पर अर्पित करने लगा। जब वह अपना दसवां और अंतिम सिर काटने जा रहा था, तभी भगवान शिव प्रकट हुए और रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर, उन्होंने सभी धड़ों को पहले की भांति ठीक कर दिया और रावण से वर मंगने के लिए कहा।

रावण ने भोलेनाथ से लंका साथ चलने का वर मांगा और वहीं पर स्थापित हो जाने की प्रार्थना की। रावण की इस प्रार्थना को सुनकर भोलेनाथ साथ चलने को तैयार हो गए और उन्होंने शिवलिंग का रूप धारण कर लिया। साथ ही रावण के समक्ष यह शर्त भी रखी कि यदि रावण उन्हें बीच रास्ते में भूमि पर रख देगा तो वह उसके साथ लंका नहीं जाएंगे। रावण ने इस शर्त को स्वीकार किया और शिवलिंग को अपने कंधे पर उठाकर आगे बढ़ने लगा।

रावण लंबे समय से शिवलिंग को कंधे पर उठाए आगे बढ़ रहा था, लेकिन बीच में उसे लघुशंका की अनुभूति हुई और वह मार्ग पर जा रहे अहीर को शिवलिंग थमाकर, लघुशंका के लिए चला गया। इस बीच अहीर को यह आदेश भी दिया कि वह इस शिवलिंग को भूमि पर ना रखे। लेकिन देवाधिदेव महादेव ने एक लीला रची और शिवलिंग का वजन धीरे-धीरे बढ़ने लगा। जब उस अहीर को यह वजन सहन नहीं हुआ, तब उसने विवश होकर शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और रावण द्वारा मारे जाने के भय से वहां से भाग गया। जब रावण वापस आया तो वह स्तब्ध रह गया और उसे अहीर के इस कृत्य पर बहुत क्रोध आया। लेकिन उसने क्रोध को दबाकर शिवलिंग को पूर्ण बल से उठाने का प्रयास किया। लेकिन महदेव उस स्थान से टस से मस नहीं हुए और अंत में रावण निराश होकर वहां से चला गया। जाने से पहले उसने शिवलिंग पर अंगूठा गाड़ दिया। तब से यहां बैद्यनाथ महादेव वास करने लगे और इसी रूप में उन्हें पूजा जाने लगा।

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कुछ अन्य जानकारी

भगवान श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का यह मंदिर झारखंड के दुमका क्षेत्र में स्थापित है, जिसे बाबाधाम के नाम से भी जाना जाता है। महाशिवरात्रि के दिन और सावन मास में लाखों की संख्या में कांवड़िये व शिवभक्त बाबा धाम में गंगा जल चढ़ाने के लिए दूर-दूर से आते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है उसे सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और भगवान शिव की कृपा सदैव बनी रहती है।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।