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Mahashivratri 2023 Special: इस धाम में स्वयं वास करते हैं महादेव, पढ़िए काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा

Mahashivratri 2023 18 फरवरी 2023 को हर्षोल्लास के साथ भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि व्रत रखा जाएगा। इस दिन भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग का स्मरण करने से कई परेशानियां दूर हो जाती हैं। आइए पढ़ते हैं सातवें ज्योतिर्लिंग के विषय में।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Mon, 13 Feb 2023 04:35 PM (IST)
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Mahashivratri 2023: जानिए काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी रोचक कथा।
नई दिल्ली, अध्यात्मिक डेस्क | Mahashivratri 2023, Kashi Vishwanath Jyotirlinga: सनातन धर्म में महाशिवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव व माता पार्वती की उपासना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। शास्त्रों में बताया गया है कि महाशिवरात्रि पर्व के दिन साधक को सभी 12 ज्योतिर्लिंग का स्मरण करके भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए। बता दें कि देश के विभिन्न हिस्सों में प्रसिद्द द्वादश ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, जिनके दर्शन के लिए न केवल देशभर से बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में शिवभक्त आते हैं। आज हम बात करेंगे भगवान शिव के सातवें प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की, जिनका मंदिर पवित्र मां गंगा के तट पर स्थापित है। आइए पढ़ते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और कुछ रोचक बातें।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना

किवदंतियों के अनुसार जब भगवान शिव और माता पावर्ती का विवाह हुआ था, तब भोलेनाथ का निवास स्थान कैलाश पर्वत था और पार्वती मां अपने पिता के घर रहती थीं। लेकिन उनका मन यहां नहीं लग रहा था। एक बार जब शिव जी माता पार्वती से मिलने आए तो माता ने उन्हें अपने साथ ले जाने की प्रार्थना की। माता पार्वती की बात मानकर भगवान शिव उन्हें काशी ले आए और तब से यहीं बस गए।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की यह नगरी उनके त्रिशूल की नोक पर बसी हुई है और बाबा विश्वनाथ को विश्वेश्वर यानि विश्व के शासक के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बाबा विश्वनाथ का यह मंदिर युगो-युगांतर से यहां मौजूद है, जिसका उल्लेख महाभारत जैसे पौराणिक वेद-ग्रंथ में किया गया है। लेकिन 11 वीं सदी में राजा हरिश्चन्द्र ने करवाया था। कई महान साधु-संत जैसे आदि गुरु शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, गोस्वामी तुलसीदास भगवान काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर चुके हैं। बता दें कि इस भव्य धाम की संपदा को लूटने के लिए कई मुगल आक्रान्ताओं ने इस मंदिर पर आक्रमण किया। मंदिर पर आक्रमण और पुनर्निर्माण का क्रम 11 वीं सदी से 15वीं सदी के बीच समय-समय पर चलता रहा।

वर्तमान में काशी विश्वनाथ मंदिर

वर्तमान समय में भगवान विश्वनाथ के दर्शन के लिए जिस मन्दिर में लाखों की संख्या में लोग आते हैं, उसका निर्माण वर्ष 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था और फिर कई राजाओं ने इस मंदिर में पूजा-पाठ और दान किया था। 

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कुछ रोचक बातें

  • वैदिक पुराणों में बताया गया है कि काशी में भगवान विष्णु के अश्रु गिरे थे, जिससे बिंदु सरोवर का निर्माण हुआ था। साथ ही पुष्कर्णी का निर्माण भी उन्हीं के चिंतन से हुआ था।

  • बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पहले उनके गण भैरवनाथ के दर्शन को अनिवार्य माना जाता है। मान्यता है कि काशी के कोतवाल अर्थात काल भैरव की अनुमति के बिना दर्शन का फल प्राप्त नहीं होता है।

  • काशी को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जो मनुष्य यहां शरीर त्यागता है वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि कई लोग काशी में अपने जीवन का अंतिम समय व्यतीत करते हैं।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।