Mallikarjuna Jyotirlinga: पुत्र के वियोग में भगवान शिव ने धारण किया था मल्लिकार्जुन रूप
Mallikarjuna Jyotirlinga आंध्र प्रदेश में भगवान शिव और माता पार्वती सिद्ध मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में मौजूद हैं। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी एक पौराणिक कथा शास्त्रों में विस्तार से उल्लेखित है। माना जाता है कि यहां शिव-पार्वती के दर्शन से सभी दुःख दूर हो जाते हैं।
By Shantanoo MishraEdited By: Updated: Sun, 13 Nov 2022 03:10 PM (IST)
नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Mallikarjuna Jyotirlinga, History and Story: आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में पवित्र शैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यह ज्योतिर्लिंग करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र भी है। बता दें कि सनातन धर्म में भगवान शिव के पूजनीय द्वादश ज्योतिर्लिंग देश के विभिन्न कोनों में स्थापित हैं। इनमें से एक मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भी है, जिनका इतिहास पौराणिक कथा से जुड़ता है। भगवान शिव का यह पवित्र ज्योतिर्लिंग जिस पर्वत पर स्थापित है उसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। यहां भगवान शिव और माता पार्वती दोनों के संयुक्त रूप दर्शन होते हैं। हर साल आस्था के इस केंद्र पर अनेकों शिवभक्त श्रद्धा भाव से आते हैं और भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन करते हैं। आइए जानते हैं मल्लिकार्जुन ज्योतिलिंग से जुड़ा पौराणिक इतिहास और इस मंदिर का महत्व।
मल्लिकार्जुन का अर्थ
जैसा कि आपको बताया गया है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में माता पार्वती और शिव के संयुक्त रूप के दर्शन होते हैं। इसलिए मल्लिकार्जुन का अर्थ दो शब्दों के संधि-विच्छेद से निकाला जा सकता है। जिसमें मल्लिका का तात्पर्य माता पार्वती हैं और अर्जुन भगवान शिव के लिए प्रयोग किया जाता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा (Mallikarjuna Jyotirlinga Katha)
वेद-पुराणों के अनुसार एक बार भगवान शिव के दोनों पुत्र यानी गणेश जी और कार्तिकेय विवाह के लिए आपस में झगड़ने लगे थे। वह इस बात पर झगड़ रहे थे कि 'कौन सबसे पहले विवाह करेगा?' तब भगवान शिव ने निष्कर्ष निकालने के लिए उन दोनों को एक कार्य सौंपा। उन्होंने कहा कि जो सबसे पहले पृथ्वी का चक्कर लगाकर आएगा, उसी का विवाह सबसे पहले किया जाएगा। भगवान कार्तिकेय पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए चले गए। लेकिन गणेश जी ने अपनी सूझबूझ से अपने माता-पिता की परिक्रमा की। जब कार्तिकेय लौटे और गणेश जी को पहले विवाह करते हुआ देखा तो वह अपने माता-पिता से अत्यंत क्रोधित हो गए।क्रोधित होकर कार्तिकेय क्रोंच पर्वत पर आ गए। इसके बाद सभी देवता उनसे कैलाश पर्वत पर लौटने की विनती करने लगे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। पुत्र वियोग में माता पार्वती और भगवान शिव दुखी हो गए। जब दोनों से रहा नहीं किया तब वह स्वयं क्रोंच पर्वत पर गए। लेकिन कार्तिकेय अपने माता-पिता को देख और दूर चले गए। अंत में पुत्र के दर्शन के लिए भगवान शिव ने ज्योति रूप धारण किया और उसी में माता पार्वती भी विराजमान हो गईं। उसी दिन से इन्हें मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा। तभी से यह मान्यता प्रचलित है कि प्रत्येक अमावस्या के दिन भगवान शिव यहां आते हैं और पूर्णिमा के दिन माता पार्वती यहां विराजमान होती हैं।
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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का महत्व
शास्त्रों में बताया गया है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। सावन के महीने में अथवा शिवरात्रि के दिन यहां भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। मान्यता यह भी है कि यहां पूजा-पाठ करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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