Manikarnika Ghat: बेहद प्रसिद्ध है मणिकर्णिका घाट, जानें कैसे पड़ा इसका नाम?
काशी में गंगा नदी के तट पर मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) है। इसको महाश्मशान भी कहा जाता है।हिंदू मान्यता के अनुसार मां पार्वती का कान का फूल यहां गिर गया था जिसे देवों के महादेव का द्वारा ढूंढा गया। इसी कारण इसका नाम मणिकर्णिका घाट पड़ गया। इस घाट पर हमेशा चिता जलती रहती है और कभी नहीं भुजती। आइए जानते हैं इस घाट के रहस्य के बारे।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Manikarnika Ghat: भगवान शिव की नगरी काशी देश समेत विश्वभर में मशहूर है। यह नगरी कई रहस्यों की वजह से अधिक जानी जाती है। काशी में गंगा नदी के तट पर मणिकर्णिका घाट है। इसको महाश्मशान भी कहा जाता है। यह घाट बेहद प्रसिद्ध काशी के सबसे पुराने घाटों में एक माना जाता है। मान्यता है कि यहां अंतिम संस्कार करने से मृत इंसान की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में आइए जानते हैं इस घाट के रहस्य के बारे में विस्तार से।
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कैसे पड़ा इस घाट का नाम मणिकर्णिका?हिंदू मान्यता के अनुसार, मां पार्वती का कान का फूल यहां गिर गया था, जिसे देवों के महादेव का द्वारा ढूंढा गया। इसी कारण इसका नाम मणिकर्णिका घाट पड़ गया। इस घाट पर हमेशा चिता जलती रहती है और कभी नहीं भुजती।
काशी खंड के मुताबिक, मणिकर्णिका घाट पर जिसका अंतिम संस्कार होता है। उसे भगवान महादेव तारक मंत्र कान में देते हैं और मोक्ष प्रदान प्राप्ति होती है।
काशी खंड में आता है इसका वर्णन मरणं मंगलं यत्र विभूतिश्च विभूषणम्कौपीनं यत्र कौशेयं सा काशी केन मीयते।इस श्लोक में मर्णिकर्णिका घाट के बारे में बताया गया है। श्लोक का अर्थ यह है कि मृत्यु को मंगलमय माना गया है। जहां की विभूती आभूषण हो और राख रेशमी कपड़े हो। वह काशी नगरी अधिक अतुल्निय और दिव्य है।
चिता की राख से खेली जाती है होलीयहां होली के पर्व पर चिता की राख से होली खेली जाती है। काशी में खेली जाने वाली मसान होली को चिता भस्म होली के नाम से भी जाना जाता है। चिता की राख से होली खेलने की परंपरा कई वर्षों पुरानी है। यह होली देवों के देव महादेव को समर्पित है। मसान की होली को मृत्यु पर विजय का प्रतीक माना गया है। मणिकर्णिका घाट का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर के द्वारा हुआ था। घाट के पास आद्या शक्ति पीठ विशालाक्षी जी का मंदिर स्थित है।
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