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Mannarasala Mandir: केरल के इस मंदिर में होती है नांगो की पूजा, परशुराम जी से जुड़ा है इतिहास

भारत के कई मंदिर हैं जो अपनी मान्यताओं को लेकर लोकप्रिय हैं। इसी प्रकार केरल का मन्नारसला श्री नागराज मंदिर भी अपने आप में एक आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। मन्नारसला श्री नागराज मंदिर एक बहुत प्राचीन मंदिर है जिसमें भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इतना ही नहीं यह मंदिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध तीर्थयात्रा केंद्र भी है।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Tue, 21 May 2024 01:53 PM (IST)
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Mannarasala Mandir Kerala केरल के इस मंदिर में होती है नांगो की पूजा।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Mannarasala Mandir Kerala: भारतीय संस्कृति में नागों को भी पूजनीय माना गया है। केरल के हरिपद के जंगलों में स्थित प्राचीन मन्नारसाला मंदिर, इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। यह मंदिर अपनी मान्यताओं और लोकप्रियता के कारण विश्व स्तर पर प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह केरल में अपनी तरह का सबसे बड़ा है, जो मुख्य रूप से नाग देवताओं, विशेषकर नागराज को समर्पित है।

क्या है खासियत

केरल के मन्नारशाला मंदिर में 100,000 से अधिक सर्प प्रतिमाएं या छवियां स्थापित हैं। यह मंदिर मुख्य रूप से नागराज और उनकी अर्धांगिनी नागायक्षी देवी को समर्पित है। यहां नागराज और देवी नागयक्षी की अनोखी प्रतिमा स्थापित है, जिनके दर्शन के लिए लोग देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आते हैं। यह मंदिर 16 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। मंदिर की खास बात यह है कि यहां की पुजारी एक महिला होती है, जिन्हें मन्नारसाला अम्मा के नाम से जाना जाता है। यह पद मुख्य तौर से इल्लम की सबसे वरिष्ठ महिला को दिया जाता है।

मंदिर का अनोखा इतिहास

इस मंदिर का इतिहास भगवान विष्णु के छठवें अवतार यानी भगवान परशुराम से जुड़ा है, जिन्हें केरल का निर्माता भी माना जाता है। किंवदंतियों के अनुसार, परशुराम जी ने केरल की भूमि को ब्राह्मणों को दान कर दिया था। हालांकि, इस स्थान पर कई जहरीले सांप थे, जिस कारण लोगों का यहां रहना मुश्किल था। तब भगवान परशुराम ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की।

तब शिव जी ने उन्हें सांपों के राजा नागराज की पूजा करने की सलाह दी, ताकि सांपों का जहर मिट्टी में फैल जाए और भूमि उपजाऊ हो जाए। शिव जी के कहे अनुसार, परशुराम जी ने मन्नारसला में नागराज की मूर्ति स्थापित की और अनुष्ठान करने के लिए एक ब्राह्मण परिवार को नियुक्त किया। आज भी उसी परिवार के लोग, जिन्हें इल्लम के नाम से जाना जाता है, वह मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं।

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मंदिर का मान्यता

माना जाता है कि जो भी निसंतान दम्पति इस मंदिर में संतान की कामना लेकर पहुंचता है, उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है। मन्नारसला मंदिर में कई त्योहारों का आयोजन होता है, जिसमें भक्तों और पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ती है। इनमें, मलयालम महीने थुलम में आने वाला मन्नारसाला अयिल्यम त्योहार सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह त्यौहार सर्पबली के साथ समाप्त होता है और इस दौरान जिस दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है वह नाग देवता को आभार व्यक्त करते हैं।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।