पुणे के इन आठ अष्टविनायक मंदिरों के दर्शन करने से मिलेगा विघ्नहर्ता का आर्शिवाद
अगर अब तक नहीं किये हैं तो इस सकट चौथ पर सोचिये और प्रयास कीजिए कि नव वर्ष में अवश्य कर पायें पुणे के इन 8 गणेश मंदिरों के दर्शन।
By Molly SethEdited By: Updated: Fri, 05 Jan 2018 09:00 AM (IST)
क्या है स्वयंभू का मतलब
पुणे के विभिन्न इलाकों में श्री गणेश के आठ मंदिर हैं, इन्हें अष्टविनायक कहा जाता है। इन मंदिरों को स्वयंभू मंदिर भी कहा जाता है। स्वयंभू का अर्थ है कि यहां भगवान स्वयं प्रकट हुए थे किसी ने उनकी प्रतिमा बना कर स्थापित नहीं की थी। इन मंदिरों का जिक्र विभिन्न पुराणों जैसे गणेश और मुद्गल पुराण में भी किया गया है। ये मंदिर अत्यंत प्राचीन हैं और इनका ऐतिहासिक महत्व भी है। इन मंदिरों की दर्शन यात्रा को अष्टविनायक तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है। ये हैं वो आठ मंदिर
मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर पुणे के मोरगाँव क्षेत्र में मयूरेश्वर विनायक का मंदिर है। पुणे से करीब 80 किलोमीटर दूर मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार भी हैं जिन्हें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग चारों युग का प्रतीक मानते हैं। यहां गणेश जी की मूर्ती बैठी मुद्रा में है और उसकी सूंड बाई है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं। यहां नंदी की भी मूर्ती है। कहते हैं कि इसी स्थान पर गणेश जी ने सिंधुरासुर नाम के राक्षस का वध मोर पर सवार होकर उससे युद्ध करते हुए किया था। इसी कारण उनको मयूरेश्वर कहा जाता है।
सिद्धिविनायक मंदिर करजत तहसील, अहमदनगर में है सिद्धिविनायक मंदिर। ये मंदिर पुणे से करीब 200 किमी दूर भीम नदी पर स्थित है। यह मंदिर करीब 200 साल पुराना बताया जाता है। सिद्धटेक के में भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थी, वहीं एक पहाड़ की चोटी पर सिद्धिविनायक मंदिर बना हुआ है। इसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है। इस मंदिर की परिक्रमा करने के लिए पहाड़ की यात्रा करनी होती है। सिद्धिविनायक मंदिर में गणेशजी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। यहां गणेश जी की सूंड सीधे हाथ की ओर है।बल्लालेश्वर मंदिरपाली गांव, रायगढ़ में इस मंदिर का नाम गणेश जी के भक्त बल्लाल के नाम पर रखा गया है। बल्लाल की कथा के बारे में कहते हैं कि इस परम भक्त को उसके परिवार ने गणेश जी की भक्ति के चलते उनकी मूर्ती सहित जंगल में फेंक दिया था। जहां उसने केवल गणपति का स्मरण करते हुए समय बिता दिया था। इससे प्रसन्न गणेश जी ने उसे इस स्थान पर दर्शन दिया और कालानंतर में बललाल के नाम पर उनका ये मंदिर बना। ये मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली से टोयन और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किलोमीटर दूर स्थित है। वरदविनायक मंदिरइसके बाद रायगढ़ के कोल्हापुर में है वरदविनायक मंदिर। एक मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी कामनों को पूरा होने का वरदान देते हैं। एक कथा ये भी है कि इस मंदिर में नंददीप नाम का दीपक है जो कई वर्षों से लगातार जल रहा है। चिंतामणी मंदिरथेऊर गांव में तीन नदियों भीम, मुला और मुथा के संगम पर स्थित है चिंतामणी मंदिर। ऐसी मान्यता है कि विचलित मन के साथ इस मंदिर में जाने वालों की सारी उलझन दूर हो कर उन्हें शांति मिल जाती है। इस मंदिर से भी जुड़ी एक कथा है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपने विचलित मन को शांत करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर लेण्याद्री गांव में है गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर जिसका अर्थ है गिरिजा के आत्मज यानी माता पार्वती के पुत्र अर्थात गणेश। यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इसे लेण्याद्री पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। इस पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं जिसमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। एक अौर विशेषता ये है कि यह पूरा मंदिर एक ही बड़े पत्थर को काटकर बनाया गया है।विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिरयह मंदिर पुणे के ओझर जिले के जूनर क्षेत्र में स्थित है। पुणे-नासिक रोड पर करीब 85 किलोमीटर दूरी पर ये मंदिर बना है। एक किंवदंती के अनुसार विघनासुर नाम का असुर जब संतों को प्रताणित कर रहा था, तब भगवान गणेश ने इसी स्थान पर उसका वध किया था। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है।महागणपति मंदिरराजणगांव में स्थित है महागणपति मंदिर। इस मंदिर को 9-10वीं सदी के बीच का माना जाता है। पूर्व दिशा की ओर मंदिर का बहुत विशाल और सुन्दर प्रवेश द्वार है। यहां गणपति की मूर्ति को माहोतक नाम से भी जाना जाता है। एक मान्यता के अनुसार विदेशी आक्रमणकारियों से रक्षा करने के लिए इस मंदिर की मूल मूर्ति को तहखाने में छिपा दिया गया है।