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Nag Panchami पर इस समय खुलेंगे उज्जैन के नागचंद्रेश्वर के कपाट, विश्व में और कहीं नहीं है ऐसी मूर्ति

भारत में ऐसे कई मंदिर मौजूद हैं जो अपनी-अपनी मान्यताओं को लेकर काफी प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक मंदिर नागचंद्रेश्वर है जो मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इसके दर्शन साल में केवल एक ही बार होते हैं। तो चलिए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी और भी कुछ खास बातें।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Sat, 03 Aug 2024 04:16 PM (IST)
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Nag Panchami कब खुलेंगे उज्जैन के नागचंद्रेश्वर के कपाट?

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है। ऐसे में इस साल नाग पंचमी शुक्रवार, 09 अगस्त को मनाई जाएगी। यह तिथि भगवान शिव के आराधना के साथ-साथ नाग देवता की पूजा के लिए भी समर्पित मानी जाती है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे खास मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पूरे वर्ष में केवल नाग पंचमी के अवसर पर ही खुलता है।

कब खुलेगा मंदिर

इस बार नाग पंचमी के अवसर पर नागचंद्रेश्वर के पट 08 अगस्त की रात 12 बजे खोले जाएंगे, जो 09 अगस्त की रात 12 बजे तक खुले रहेंगे। ऐसे में भक्त 24 घंटों तक भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन कर सकेंगे। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त इस मंदिर के दर्शन करता है उसे सर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। यही कारण है कि मंदिर के खुलने पर भक्तों की भारी भीड़ यहां उमड़ती है।

क्या है मंदिर की खासियत

नागचंद्रेश्वर, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के शिखर पर विराजमान हैं। यहां पर नाग देवता की एक अद्भुत प्रतिमा स्थापित है, जो 11वीं शताब्दी की बताई जाती है। साथ ही यह भी कहा जाता है क यह प्रतिमा नेपाल से भारत लाई गई थी। इस प्रतिमा में नाग देवता ने अपने फन फैलाए हुए हैं और उसके ऊपर शिव-पार्वती विराजमान हैं। यह एकलौता ऐसा मंदिर हैं जहां विष्णु भगवान की बजाय भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। पूरे साल में इस मंदिर के पट केवल 24 घंटे के लिए ही खोले जाते हैं। नागपंचमी पर भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की जाती है।

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केवल एक ही बार क्यों खुलता है मंदिर

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सर्पों के राजा तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। इस तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पराज तक्षक को अमरत्व का वरदान दिया। इसके बाद से तक्षक नाग ने भगवान शिव के सान्निध्य में ही वास करने लगे। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पहले सर्पराज तक्षक चाहते थे कि उनके एकांत में कोई विघ्न न आए। यही वजह है कि केवल नाग पंचमी के अवसर पर उनके दर्शन होते हैं।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।