Narasimha Temple: प्रयागराज का मंदिर डेढ़ सौ वर्ष है पुराना, भगवान नरसिंह और मां लक्ष्मी की मूर्ति है स्थापित
भगवान नरसिंह जगत के पालनहार भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के चौथे अवतार हैं जिन्होंने हिरण्यकश्यप के वध के लिए अवतार लिया। देशभर में भगवान नरसिंह को समर्पित कई मंदिर हैं। इनमें दारागंज का नरसिंह मंदिर (Narasimha Temple) भी शामिल है। यह मंदिर कई वर्षों पुराना बताया जाता है। इस मंदिर में भगवान नरसिंह के संग मां लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Narasimha Temple: देशभर में वर्तमान समय में कई मंदिर अधिक प्रसिद्ध हैं। कई मंदिर अपनी मान्यताओं की वजह से जाने जाते हैं, तो कुछ मंदिर वास्तुकला और रहस्य की वजह से अधिक मशहूर हैं। इन मंदिरों में प्रयागराज (Prayagraj) का नरसिंह मंदिर भी शामिल है। ऐसा बताया जाता है कि यह मंदिर डेढ़ सौ वर्ष पुराना है। मंदिर में भगवान नरसिंह (Narasimha mandir) की मूर्ति विराजमान है। प्रभु की यह मूर्ति सतयुग के समय की बताई जाती है। ऐसे में आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी अधिक जानकारी के बारे में।
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बेहद पुराना है मंदिर
भगवान को नरसिंह को समर्पित यह मंदिर डेढ़ सौ वर्ष पुराना है। मंदिर घनी आबादी वाले मोहल्ले में बना हुआ है। आज के समय में भी इस मंदिर से मुख्य सड़क से जुड़ाव नहीं है। मंदिर में भगवान नरसिंह के साथ संग धन की देवी मां लक्ष्मी की भी मूर्ति है।इस मंदिर में स्थापित मूर्ति सतयुग के समय की बताई जाती है। मूर्ति इस मंदिर में स्थापित होने से पहले जहां आज हरी का मस्जिद है, उसी जगह पर मुगल काल में आक्रमण के समय दब गई थी, जिसके बाद भगवान नरसिंह की यह मूर्ति दारागंज के मंदिर में विराजमान की गई।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
भगवान विष्णु ने क्यों लिया भगवान नरसिंह का अवतार?
पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद था। वह श्रीहरि की पूजा किया करता था, लेकिन हिरण्यकश्यप इस बात से खुश नही था। ऐसे में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को जान से मारने का निर्णय किया, लेकिन हर बार श्रीहरि की कृपा से प्रह्लाद बच जाता था। इस वजह से हिरण्यकश्यप क्रोधित हो गया। दोबारा से हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने की सोची, तो उस दौरान श्रीहरि भगवान नरसिंह के स्वरूप में खंभा फाड़कर प्रकट हुए। वह आधे इंसान और आधे शेर के रूप में प्रकट हुए थे। भगवान नरसिंह ने नाखूनों से हिरण्यकश्यप के पेट को फाड़कर उसका वध दिया। इस तरह से प्रह्लाद की रक्षा हुई। यह भी पढ़ें: Sanwalia Seth Temple: भगवान श्रीकृष्ण को क्यों कहा जाता है सांवलिया सेठ? इस राज्य में है भव्य मंदिरअस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।