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Jagannath Temple: क्यों है प्रभु जगन्नाथ की प्रतिमा अधूरी? यहां आज भी धड़कता है श्रीकृष्‍ण का दिल

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा सभी भक्तों के लिए खास है जिसका पालन वे भाव के साथ करते हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से सभी बिगड़े कार्य बन जाते हैं। इस बार इस पवित्र यात्रा की शुरुआत 07 जुलाई को होगी जब इस यात्रा में कुछ समय ही शेष है तो यहां से जुड़ी कुछ रोचक बातों को जान लेते हैं जो यहां पर दी गई हैं -

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 06 Jul 2024 01:56 PM (IST)
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Jagannath Temple: यहां आज भी धड़कता है श्रीकृष्‍ण का हृदय

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जगन्नाथ पुरी को सबसे पवित्र धाम में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि पुरी वह स्थान है, जहां भगवान कृष्ण का दिल धड़कता है। इसके पीछे कई सारी पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। बता दें, यह धाम भगवान विष्णु के एक रूप, जगन्नाथ प्रभु को समर्पित है। उनके साथ इस स्थान पर उनके भाई-बहन सुभद्रा और बलराम भी वास करते हैं।

ऐसी मान्यता है कि इस दिव्य स्थान पर भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। ऐसे में जब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू होने जा रही है, तो यहां से जुड़े कुछ रोचक और महत्वपूर्ण विषयों को जानना बेहद जरूरी है, जो इस प्रकार हैं -

यहां आज भी धड़कता है श्रीकृष्‍ण का हृदय

धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार, जगन्नाथ धाम में आज भी भगवान कृष्ण का दिल धड़कता है। ऐसा माना जाता है कि जब मुरलीधर ने अपने शरीर का त्याग किया था, तब पांडवों द्वारा उनका दाह संस्कार किया गया। शरीर के जलने के पश्चात भी कान्हा का हृदय नहीं जला, जिस कारण पांडवों ने उसे पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया।

ऐसा कहा जाता है कि जल में प्रवाह‍ित हृदय ने एक लठ्ठे का रूप ले ल‍िया था, जिसकी जानकारी श्रीकृष्ण ने स्वप्न में राजा इंद्रदयुम्न को दी, इसके बाद राजा ने लट्ठे से भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा जी की मूर्ति को बनाने का निर्माण कार्य विश्वकर्माजी जी को सौंपा।

इस वजह से अधूरी हैं जगन्नाथ धाम की तीनों मूर्तियां

बताते चलें कि प्रतिमा को बनाने से पूर्व राजा इंद्रदयुम्न के समक्ष विश्वकर्मा जी ने एक शर्त रखी थी कि, जहां वे मूर्तियों का निर्माण कार्य करेंगे, वहां कोई भी नहीं आएगा, यदी कोई अंदर आता है, तो वे मूर्तियों को बनाने का कार्य बंद कर देंगे। भगवान विश्वकर्मा की बात राजा ने तुंरत मान ली, क्योंकि वे उसे बनवाने के लिए बहुत उत्साहित और भावुक थे।

इसके पश्चात विश्वकर्मा जी उन मूर्तियों को बनाने के कार्य में लग गए। वहीं, उनके इस दिव्य कार्य की आवाज दरवाजे के बाहर तक आती, जिसे राजा रोजाना सुनकर संतुष्ट हो जाते थे, लेकिन एक दिन अचानक से आवाजें आना बंद हो गईं, जिस कारण राजा इंद्रदयुम्न सोच में पड़ गए और उन्हें ये लगा कि मूर्तियों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।

इस गलतफहमी में उन्होंने दरवाजा खोल दिया, शर्त अनुसार दरवाजा खुलते ही विश्वकर्मा भगवान वहां से ओझल हो गए, जबकि प्रतिमाएं तैयार नहीं हुई थीं। लोगों का ऐसा मानना है कि तभी से ये मूर्तियां अधूरी हैं और इन तीनों मूर्तियों के हाथ पैर-पंजे नहीं होते हैं।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।