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Mahalaxmi Temple in Ratlam: इस मंदिर में पैसे और जेवर चढ़ाने से धन में होती है वृद्धि, क्या हैं इसकी मान्यताएं

मां लक्ष्मी के कई मंदिर हैं। जहां श्रद्धालु मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना और दर्शन के लिए आते हैं। रतलाम जिले में महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) है। दिवाली के दौरान मंदिर में बेहद खास रौनक देखने को मिलती है। यहां में श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। इस मंदिर में साधक प्रसाद के रूप में धन और जेवर अर्पित करते हैं। आइए जानते हैं मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Wed, 16 Oct 2024 03:46 PM (IST)
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Mahalaxmi Temple: जानें महालक्ष्मी मंदिर के रहस्य के बारे में
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। मां लक्ष्मी को धन की देवी माना गया है। सनातन शास्त्रों में मां लक्ष्मी की महिमा का विशेष वर्णन किया गया है। धार्मिक मान्यता है कि मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक उपासना करने से जातक को आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है। साथ ही धन लाभ के योग बनते हैं। देशभर में मां लक्ष्मी को समर्पित कई मंदिर हैं, जो किसी न किसी मान्यता के कारण से बेहद प्रसिद्ध हैं। देश में मां लक्ष्मी को समर्पित एक ऐसा भी मंदिर (Mahalaxmi Temple) है, जहां लोगों को प्रसाद के रूप में सोना-चांदी के जेवर देने की परंपरा निभाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में यह खास परंपरा पुराने समय चली आ रही है। मंदिर मध्य प्रदेश में है। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है इस मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के बारे में।

अर्पित करते हैं सोने-चांदी और हीरे का जेवर

इस मंदिर को महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Mandir Ratlam) को नाम से जाना जाता है। यह मध्य प्रदेश के इंदौर के रतलाम जिले में स्थित है। इस मंदिर में श्रद्धालु श्रद्धा अनुसार मां लक्ष्मी को सोने-चांदी और हीरे के आभूषण और धन अर्पित करते हैं। दिवाली के शुभ अवसर पर मंदिर में खास रौनक देखने को मिलती है। इस दौरान अधिक संख्या में श्रद्धालु मां लक्ष्मी के दर्शन का लाभ उठाते हैं। श्रद्धालु मंदिर की सजावट के लिए धन भी देते हैं।

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ये है मान्यता

इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है जिन श्रद्धालुओं के आभूषण और धन का इस्तेमाल मां महालक्ष्मी के श्रृंगार में होता है। मां महालक्ष्मी उनपर और उनके परिवार के सदस्यों पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखती है। मान्यता है कि इस मंदिर से प्रसाद के रूप में मिले जेवर और धन को अलमारी या तिजोरी में रखने से जातक को जीवन में कभी धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है और तिजोरी खाली नहीं होती है।

इस तरह शुरू हुई धन-दौलत अर्पित करने की परंपरा

यह मंदिर में प्राचीन में समय से स्थित है। ऐसा बताया जाता है कि महाराजा रतन सिंह राठौर के द्वारा रतलाम शहर को बसाया था। राजा दिवाली और धनतेरस के शुभ अवसर पर महालक्ष्मी शृंगार के लिए धन और सोने-चांदी के जेवर अर्पित करते थे। तभी से इस परंपरा की शुरुआत हुई।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।