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Saas Bahu Temple: बेहद खूबसूरत और अनोखा है सास-बहू मंदिर, जानें इससे जुड़े रोचक तथ्य

सास-बहू मंदिर की चर्चा काफी दूर-दूर तक है। यह राजस्थान के उदयपुर शहर से लगभग 23 किमी दूर नागदा गांव में स्थित है। इस मंदिर को कच्छवाहा वंश के राजा महिपाल ने बनवाया था। मुख्य रूप से यहां भगवान विष्णु और भोलेनाथ की पूजा होती है। पहले इस धाम को सहस्‍त्रबाहू (Saas Bahu Temple) के नाम से जाना जाता था। आइए इससे जुड़ी मुख्य बातों को जानते हैं -

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Thu, 30 May 2024 04:53 PM (IST)
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Saas Bahu Temple: इस वजह से सास-बहू मंदिर का हुआ था निर्माण -

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भारत एक ऐसा देश है, जहां पूजा-पाठ का विशेष स्थान है, इसकी झलक आप यहां के धार्मिक स्थलों में भी देख सकते हैं। साथ ही यहां प्रकृति की पूजा समुद्र, नदी, पर्वत, अग्नि, जल, वृक्ष, पशु-पक्षी आदि के रूप में की जाती है। अपनी संस्कृति को बढ़ावा कैसे देना है ? यह आप भारत से सीख सकते हैं। ऐसे में आज हम एक ऐसे दिलचस्प मंदिर (Temple) की बात करेंगे, जिसकी चर्चा दूर-दूर तक है, तो आइए जानते हैं -

इस वजह से सास-बहू मंदिर का हुआ था निर्माण

दरअसल, हम सास-बहू मंदिर (Saas Bahu Temple) की बात कर रहे हैं, जो राजस्थान के उदयपुर शहर से लगभग 23 किमी दूर, नागदा गांव में स्थित है। इस धाम के मुख्य देवता भगवान विष्णु हैं। वहीं, इस मंदिर के नाम से लोग यह सोचते हैं कि यह सास-बहू से जुड़ा होगा, जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इसका निर्माण कच्छवाहा वंश के राजा महिपाल ने करवाया था।

ऐसा कहा जाता है कि महिपाल की रानी भगवान विष्णु की परम भक्त थीं, जिस वजह से राजा ने अपनी प्रिय पत्नी के लिए यह मंदिर बनवाया था, तााकि वह अपने इष्ट देव की पूजा कर सके।

मंदिर का नाम सास-बहू कैसे पड़ा?

वहीं, जब कुछ सालों बाद राजा के पुत्र का विवाह हुआ, तो राजा ने अपनी बहू के लिए उसी मंदिर के पास भगवान शिव का मंदिर बनवाया, क्योंकि उनकी बहू भगवान शिव को पूजती थीं। इसके बाद दोनों मंदिरों को सहस्‍त्रबाहू के नाम से जाना जाने लगा, जिसका अर्थ है- 'हजार भुजाओं वाले'।

जानकारी के लिए बता दें, जब लोगों को इसका नाम बोलने में कठिनाई हुई, तो लोगों ने इसे सास-बहू मंदिर कहना शुरू कर दिया और इसी के नाम से इस धाम की ख्याति हुई।

बेहद खूबसूरत है सास-बहू धाम

सास-बहू मंदिर कम से कम दस या पांच छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। इसके सामने की जगह में विशेष त्योहारों पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखने के लिए एक तोरणद्वार है। इसमें तीन दरवाजे तीन दिशाओं की ओर हैं, जबकि चौथा दरवाजा एक कमरे में स्थित है, जो सभी के लिए बंद है।

मंदिर के मुख्य द्वार पर माता सरस्वती, ब्रह्मा जी और श्री हरि की प्रतिमा स्थापित है। वहीं, इसकी दीवारों पर अद्भुत नक्काशी और शानदार वास्तुकला की झलक देखने को मिलती है।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।