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Shamlsha Sheth Mandir: इस धाम में द्वारकाधीश जी ने स्वीकार की थी नरसिंह मेहता की हुंडी, दर्शन मात्र से दूर होते हैं सभी कष्ट

नरसिम्हा मेहता भगवान कृष्ण के बहुत बड़े उपासक थे इसलिए द्वारकाधीश जी ने शामलिया सेठ का रूप धारण करके दहेज स्वीकार किया। तभी से द्वारकाधीश को शामलिया सेठ के रूप में पूजा जाता है। गोमती तट पर जिस स्थान पर भगवान नरसिंह मेहता की हुंडी स्वीकार की थी उस स्थान पर शिखर युक्त एक सदियों पुराना (Shamlsha Sheth Mandir) मंदिर है।

By Jagran News Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 26 Aug 2024 11:43 AM (IST)
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Shamlsha Sheth Mandir: इस धाम में द्वारकाधीश जी ने स्वीकार की थी नरसिंह मेहता की हुंडी।

किशन प्रजापति, द्वारका। मेरी हुंडी स्वीकारे महाराज रे, शामला गिरधारी... भक्त नरसिंह मेहता द्वारा रचित यह पद या भजन सभी ने सुना होगा और बुजुर्गों ने भी यह कहानी सुनी होगी। आइए हम आपको उस स्थान के बारे में बताते हैं, जहां वर्षों पहले भगवान द्वारकाधीश जी ने नरसिंह मेहता की हुंडी का स्वीकार किया था और उसकी महिमा के बारे में। महत्वपूर्ण बात यह है कि भगवान द्वारकाधीश जी ने द्वारका मंदिर की छप्पन सीढ़ी के पास नरसिंह मेहता की हुंडी स्वीकार की थी।

यहां हम इस पौराणिक स्थान के बारे में द्वारकाधीश मंदिर के पुजारी दीपक भाई ठाकुर द्वारा दी गई जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।

शामलिया सेठ की पूजा

द्वारकाधीश मंदिर के वरदार पुजारी दीपक भाई ने कहा कि जूनागढ़ में किसी ने नरसिंह मेहता को मजाक में बताया था कि द्वारका में शामलिया सेठ सभी की हुंडी स्वीकार करते हैं। दरअसल, द्वारका में कोई शामलिया सेठ नहीं थे, लोगों ने नरसिंह मेहता के भोलेपन का फायदा उठाया था। नगर मे एक व्यापारी आया और उन्होने जूनागढ़ मे हुंडी कौन लिखते है? ऐसा पुछा तो यहां के लोगो ने नरसिंह मेहता का नाम दीया। व्यापारी नरसिंह मेहता के पास आया, तो नरसिंह मेहता ने उनको हुंडी लीख दी और उन्हें यहां द्वारका भेज दिया।

नरसिंह मेहता भगवान कृष्ण के बहुत बड़े उपासक थे, इसलिए द्वारकाधीश जी ने शामलिया सेठ का रूप धारण करके दहेज स्वीकार किया। तभी से द्वारकाधीश को शामलिया सेठ के रूप में पूजा जाता है। गोमती तट पर जिस स्थान पर भगवान नरसिंह मेहता की हुंडी स्वीकार की थी, उस स्थान पर शिखर युक्त एक सदियों पुराना मंदिर है।

द्वारकाधीशजी का चतुर्भुज रूप

इस मंदिर में जगत मंदिर की तरह ही द्वारकाधीश जी का चतुर्भुज रूप विराजमान है। जो पुजारी द्वारकाधीश मंदिर में पूजा करते हैं वही पुजारी अपनी बारी के अनुसार इस मंदिर में शामलिया शेठ की भी पूजा करते हैं। यहां फर्क सिर्फ इतना है कि इस मंदिर का प्रबंधन देवस्थान समिति के अलावा पुजारी ही करते हैं। ठाकुर जी की दिनचर्या में, द्वारकाधीश जी के भोग भंडार से दो समय का सारा भोग इसी मंदिर में शामलसा सेठ को चढ़ाया जाता है।

जैसे जगत मंदिर में भगवान द्वारकाधीश जी की पूजा की जाती है, वैसे ही इस मंदिर में शामलसा सेठ की पूजा की जाती है।

सभी परेशानियां दूर होती हैं

जो कोई भी आर्थिक तंगी में होता है और यहां शामलसा सेठ (द्वारकाधीश जी) के चरणों में प्रार्थना करता है, उसकी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं, जिस प्रकार शामलिया सेठ ने नरसिंह मेहता का दहेज स्वीकार किया था, उसी प्रकार वह यहां आने वाले भक्तों की हुंडी भी स्वीकार करते हैं। आज भी यदि किसी के घर में कोई शुभ कार्य होता है और वह आर्थिक परेशानी में है तो वह यहां आकर सच्चे मन से प्रार्थना करता है, तो शामलिया सेठ उसकी आर्थिक परेशानी सहित अन्य परेशानियां दूर कर देते हैं।

इस मंदिर की प्राचीन मूर्ति बलुआ पत्थर की थी। जर्जरता के बाद 1980 या 85 में पुजारी परिवार ने अपनी प्रतिष्ठा बहाल की। यह मूर्ति वाधवानी काले पत्थर से बनी है।

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