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Shardiya Navratri में इस जगह होती है महिषासुर की पूजा, ये समुदाय राक्षस को मानते हैं अपना पूर्वज

भक्त शारदीय नवरात्र के आने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस उत्सव के दौरान साधक अलग-अलग दिन मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए व्रत भी रखते हैं। इस उत्सव के दौरान मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। वहीं देश एक ऐसा समुदाय है जहां लोग महिषासुर ( Mahishasura Worship) की पूजा करते हैं।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Mon, 07 Oct 2024 04:31 PM (IST)
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Sharadiya Navratri 2024: बेहद अनोखी है यहां की परंपरा

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल शारदीय नवरात्र (Sharadiya Navratri 2024) की शुरुआत आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। पंचाग के अनुसार, शारदीय नवरात्र का शुभारंभ 03 अक्टूबर से हुआ है और इसका समापन 11 अक्टूबर को होगा। इसके अगले दिन 12 अक्टूबर को देशभर में दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। इस उत्सव के दौरान साधक मां दुर्गा की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। जगह-जगह पर मां दुर्गा के पंडाल लगाए जाते हैं, जिनमें श्रद्धालु अधिक संख्या में दर्शन करने के लिए आते हैं। शारदीय नवरात्र के दौरान देश के एक हिस्से में बेहद अनोखी परंपरा निभाई जाती है। जहां समुदाय के लोग महिषासुर की उपासना करते हैं और राक्षस को अपना पूर्वज मानते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं महिषासुर की पूजा करने की क्या है वजह?

महिषासुर को मानते हैं अपना पूर्वज

शारदीय नवरात्र में छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के मनौरा विकासखंड में बेहद अनोखी परंपरा देखने को मिलती है। यहां समुदाय के लोग महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं। साथ ही महिषासुर की पूजा-अर्चना करते हैं। इस परंपरा को विशेष तरीके से निभाया जाता है।

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मां दुर्गा ने किया था महिषासुर का वध

समुदाय (Adivashi Community Worship Mahishasura) से जुड़े लोग मानते हैं कि महिषासुर का वध एक छल था, जिसमे मां दुर्गा और सभी देवी-देवताओं ने मिलकर महिषासुर की हत्या की थी। इस समुदाय के लोग दौनापठा, बुर्जुपाठ, हाडिकोन और जशपुर के जरहापाठ में रहते हैं। वहीं, बस्तर में कुछ जगहों के लोग राक्षस को पूर्वज मानते हैं।

दुर्गा पूजा में नहीं होते शामिल

समुदाय के लोग दुर्गा पूजा के उत्सव में शामिल नहीं होते हैं। समुदाय के लोगों के अनुसार, मां दुर्गा के प्रकोप की वजह से उनकी मृत्यु का डर रहता है। इसी वजह से वह दुर्गा पूजा में शामिल होने से बचते हैं।

दिवाली पर होती है राक्षस की पूजा

शारदीय नवरात्र के अलावा दिवाली के दिन इस समुदाय के लोग भैंसासुर की पूजा-अर्चना करते हैं। यह लोग शारदीय नवरात्र के उत्सव को नहीं मनाते हैं।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।