Shri Jagannath Puri Temple: जानें जगन्नाथ पुरी के बारे में, वार्षिक रथ यात्रा का क्या है महत्व
Shri Jagannath Puri Temple उड़िसा के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ जगत के स्वामी है। इसी के चलते इस नगरी को जगन्नाथपुरी या पुरी कहा जाता है।
By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Sun, 04 Oct 2020 03:37 PM (IST)
Shri Jagannath Puri Temple: उड़िसा के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ जगत के स्वामी है। इसी के चलते इस नगरी को जगन्नाथपुरी या पुरी कहा जाता है। चार धाम में से एक इस मंदिर को भी माना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों की ही तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथ यात्रा निकाली जाती है।
नील माघव के नाम से पहले पूजे जाते थे श्री जगन्नाथपुरी:श्री जगन्नथपुरी को पहले नील माघव के नाम से पूजा जाता था। नील माघव भील सरदार विश्वासु के आराध्य देव थे। करीब हजारों वर्ष पहले भील सरदार विष्वासु नील पर्वत की गुफा में ये पूजा किया करते थे।
जगन्नाथपुरी की वार्षिक रथ यात्रा:कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने एक दिन ने उनसे द्वारका के दर्शन करने की इच्छा जताई। तभी भगवान जगन्नाथ ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और सुभद्रा की इच्छा पूर्ति के लिए उन्हें रथ में बिठाया और पूरे नगर का भ्रमण करवाया। बस इसके बाद से ही जगन्नाथपुरी की रथयात्रा की शुरुआत हुई थी। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। मध्य काल से ही यह उत्सव बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों की ही तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथ यात्रा निकाली जाती है। जगन्नाथपुरी वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा है। इसका विशेष महत्व गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के लिए है।
रथ यात्रा का महत्व:माना जाता है कि इस दिन स्वयं भगवान अपने पूरे नगर में भ्रमण करते हैं। वह लोगों के बीच स्वयं आते हैं और उनके सुख-दुख में सहभागी बनते हैं। मान्यता है कि जो भक्त रथयात्रा के दौरान भगवान के दर्शन करते हैं और रास्ते की धूल कीचड़ में लेट-लेट कर यात्रा पूरी करते हैं उन्हें श्री विष्णु के उत्तम धाम की प्राप्ति होती है।मंदिर का ढांचा:
मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है। इसके शिखर पर भगवान विष्णु, जिसके शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र (आठ आरों का चक्र) मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहा जाता है। इसे अष्टधातु से बनाया गया है। इसे बेहद पावन माना जाता है। मंदिर का मुख्य ढांचा 214 फीट ऊंचे पाषाण चबूतरे पर स्थित है। इसके गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। मुख्य भवन 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है। वहीं, दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरे हुए है।