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Shri Kashi Vishwanath Temple: पार्वती जी के लिए काशी आए थे शिव शंकर, जानें कैसे हुए ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित

Shri Kashi Vishwanath Temple भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगो में से 7वां ज्योतिर्लिंग काशी में विराजमान है। विश्वनाथ को सप्तम ज्योतिर्लिंग कहा गया है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 27 Jul 2020 09:23 AM (IST)
Shri Kashi Vishwanath Temple: पार्वती जी के लिए काशी आए थे शिव शंकर, जानें कैसे हुए ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित
Shri Kashi Vishwanath Temple: पार्वती जी के लिए काशी आए थे शिव शंकर, जानें कैसे हुए ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित

Shri Kashi Vishwanath Temple: भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगो में से 7वां ज्योतिर्लिंग काशी में विराजमान है। विश्वनाथ को सप्तम ज्योतिर्लिंग कहा गया है। मान्यता है कि काशी नगरी तीनों लोकों में सबसे न्यारी नगरी है। यहां पर शिवजी का त्रिशूल विराजित है। विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी के काशी में स्थित है। इससे पहले हम आपको 6 ज्योतिर्लिंगों के बारे में बता चुके हैं और आज हम आपको इस 7वें यानी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में बता रहे हैं। इस ज्योतिर्लिंग के पीछे भी एक पौरणिक कथा है जिसका वर्णन हम यहां कर रहे हैं।

इस तरह हुई विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना:

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शंकर ने पार्वती जी से विवाह किया और उसके बाद कैलाश पर्वत आकर रहने लगे। पार्वती जी विवाहित होने के बाद भी अपने पिता के घर रह रही थीं जो उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। उन्होंने एक दिन भगवान शिव से कहा कि आप मुझे अपने घर ले चलिए। आपसे विवाह होने के बाद भी मुझे अपने पिता के घर ही रहना पड़ता है। यहां रहना मुझे अच्छा नहीं लगता है। सभी लड़कियां शादी के बाद अपने पति के घर जाती हैं लेकिन मुझे अपने पिता के घर ही रहना पड़ रहा है।

भगवान शिव ने माता पार्वती की बात को स्वीकारा और उन्हें अपने साथ अपनी पवित्र नगरी काशी ले आए। यहां आकर वो विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से ही मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। अगर कोई भक्त प्रतिदिन उनके दर्शन करता है तो उसके योगक्षेम का समस्त भार भगवान शंकर अपने ऊपर ले लेते हैं। ऐसा भक्त शिव शंकर के इस धाम का अधिकारी बन जाता है। साथ ही शिव की कृपा उस पर हमेशा बनी रहती है। मान्यता तो यह भी है कि भगवान विश्वनाथ स्वयं अपने परमभक्त को मरते समय तारक मंत्र सुनाते हैं।