Tatiya Sthan: इस गांव में अब तक नहीं आया है कलयुग, सदियों पुराने दौर में ले जाता है ये स्थान
हिंदू शास्त्रों में चार युग माने गए हैं - सतयुग त्रेतायुग द्वापरयुग और कलियुग। अभी चौथा युग यानी कलयुग चल रहा है। लेकिन मान्यताओं के अनुसार वृंदावन में एक ऐसा गांव मौजूद हैं जहां आज तक कलयुग नहीं आया। सुनने में भले ही यह अजीब लगे लेकिन इस स्थान के लोग आज भी सादा जीवन व्यतीत करते हैं और बिना आधुनिक उपकरणों के अपना जीवन बिता रहे हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। 21वीं सदी में आज देश के कोने-कोने तक आधुनिकता ने अपना स्थान बना लिया है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस कलयुग में बहुत कम लोग ऐसे मिलते हैं, जो सरल व सादा जीवन जीना पसंद करते हैं। लेकिन अगर आपसे ऐसा कहा जाए कि एक ऐसा गांव हैं, जहां लोग आज भी आधुनिक उपकरणों से दूर रहते हैं। आज हम आपको उत्तर प्रदेश के एक अनोखे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां जाकर आपको अनुभव होगा कि आप कई शताब्दियों पहले के युग में चले गए हैं।
इसलिए खास है टटिया स्थान
असल में टटिया स्थान स्वामी हरिदास संप्रदाय से जुड़ा है। यह स्थान ललित किशोरी के सातवें अनुयायी हरिदास जी का ध्यान स्थल था। स्वामी हरिदास को बांके बिहारी जी का परम भक्त माना जाता है। उन्होंने वृन्दावन के पक्षियों, फूलों और पेड़ों से प्रेम और दिव्य संगीत की शिक्षा ली।
पूरे वृंदावन क्षेत्र में टटिया गांव अपना विशेष स्थान रखता है, क्योंकि इस स्थान पर संत आदि पूरी दुनिया से विरक्त होकर भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन रहते हैं। यहां ठाकुर जी की सेवा के साथ-साथ संतसेवा, गोसेवा आदि भी की जाती है। वृंदावन में टटिया स्थान एकमात्र ऐसा स्थान है जो भक्तों को प्रकृति से जोड़ता है।
क्या है मान्यता
टटिया के स्थानीय लोगों का मानना है कि आज भी यहां ठाकुर जी निवास करते हैं। इस स्थान के निवासियों द्वारा अप्राकृतिक साधनों को चुनने की बजाय ईश्वरीयता को चुनने की मान्यता है। जहां आज के समय में लोगों का AC के बिना गुजारा करना मुश्किल है, वहां आज भी टटिया स्थान के लोग बिना पंखे के गुजारा करते हैं। सूर्यास्त के बाद यहां लोग बल्ब की जगह मोमबत्तियां जलाते हैं। इस स्थान पर राधा अष्टमी का पर्व प्रसिद्ध त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।
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कैसे पड़ा टटिया नाम
यह स्थान बांस के डंडों से घिरा हुआ है और स्थानीय भाषा में बांस को टटिया कहा जाता है। इसलिए इस स्थान का नाम टटिया पड़ गया। मान्यताओं के अनुसार, हरिदास जी और उनके अनुयायी निधिवन में ध्यान और अनुष्ठान किया करते थे। लेकिन ललित किशोरी जी, जो सातवें आचार्य थे उन्होंने निधिवन छोड़कर इस स्थान पर ध्यान करने लगे। क्योंकि यह स्थान वृंदावन के दूसरे हिस्सों से अलग था। साथ ही इस स्थान से यमुना नदी भी बेहद पास है। तभी से इस स्थान की दिव्यता और भी बढ़ गई।
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