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Trimbakeshwar Shiva Temple: जानें त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में कैसे विराजित हुए शिव शंकर, पढ़ें पौराणिक कथा

Trimbakeshwar Shiva Temple शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो में से एक श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत के नासिक से 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Wed, 29 Jul 2020 06:57 AM (IST)
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Trimbakeshwar Shiva Temple: जानें त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में कैसे विराजित हुए शिव शंकर, पढ़ें पौराणिक कथा

Trimbakeshwar Shiva Temple: आज हम अपने पाठकों के लिए 8वें ज्योतिर्लिंग की जानकारी लाएं हैं। शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो में से एक श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत के नासिक से 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई इसका वर्णन शिवपुराण में भी किया गया है। तो चलिए जानते हैं कि कैसे स्थापित हुआ श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग।

महर्षि गौतम के तपोवन में कुछ ब्राह्मण और उनकी पत्नियां रहती थीं। एक बार ब्राह्मणों की पत्नियों महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या से नाराज हो गई थीं। ब्राह्मणों की अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपकार करने के लिए कहा। इसके लिए ब्राह्मणों ने भगवान्‌ श्रीगणेशजी की आराधना की। गणेश जी, ब्राह्माणों की आराधना से बेहद प्रसन्न हुए और उनसे वर मांगने को कहा। ब्राह्मणों ने कहा, 'प्रभु! अगर आप हम से प्रसन्न हैं तो ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।' गणेश जी ने ब्राह्मणों को इस वरदान के लिए समझाया लेकिन वो सभी अपने वर पर अटल रहे।

आखिरी में गणेश जी को हारकर उनकी बात माननी पड़ी। गणेश जी ने एक दुर्बल गाय का रूप लिया और ऋषि गौतम के खेत में चले गए। ऋषि गौतम ने अपने खेत में गाय को चारा खाते देखा और बेहद नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हांकने लगे। के लिए लपके। जैसे ही गाय के शरीर पर तृण लगी तो वह मर गई। इससे बेहद हाहाकार मच गया।

सारे ब्राह्मण एकत्र हो गए और गाय की हत्या के लिए ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि इस घटना को देखकर बहुत दुखी हुए। सभी ब्राह्मणों ने ऋषि को आश्रम छोड़कर जाने को कहा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहां से दूर जाकर रहने लगे। लेकिन जहां वो गए थे वहां भी ऋषि के जाने के बाद सभी ब्राह्मणों ने उनका जीना दुभर कर दिया था। सभी कहने लगे कि तुमने गो हत्या की है जिससे तुम्हें वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य का भी कोई अधिकार नहीं है। ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना कर कहा कि वो प्रायश्चित करना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें उद्धार का कोई उपाय बताएं।

तब उन्होंने कहा- 'गौतम! तुम्हें पूरी पृथ्वी की तीन परिक्रमा करनी होंगी और सभी को अपने पाप के बारे में बताना होगा। यह करने के बाद एक महीने तक व्रत करना होगा। इसके बाद 'ब्रह्मगिरी' की 101 परिक्रमा करनी होगी। इसके बाद ही तुम्हारी शुद्धि हो पाएगी। अथवा यहां गंगाजी को लाओ और उनके जल से स्नान करों। साथ ही एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। यह करने के बाद दोबारा गंगाजी में स्नान करों। इस ब्रह्मगरी की 11 बार परिक्रमा करो। इसके बाद सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराना होगा। इसके बाद ही तुम्हारा उद्धार होगा।'

जैसा ब्राह्मणों ने कहा था महर्षि गौतम ने वैसा ही किया। शिव की आराधना में लीन वो सभी कार्य पूरा करने में तल्लीन हो गए। इससे प्रसन्न होकर शिव ने गौतम से वर मांगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा, 'प्रभु मैं यही चाहता हूं कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।' इस पर भगवान्‌ शिव ने कहा, 'गौतम! तुमने कोई पाप नहीं किया है। तुमसे छल किया गया है। गो-हत्या का अपराध तुम पर छलपूर्वक लगाया गया था। ऐसा करने के लिए मैं तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को दण्ड देना चाहता हूं।'

इस पर महर्षि गौतम ने कहा, 'प्रभु! उन्हीं की वजह से मुझे आपके दर्शन हुए हैं। उन्हें मेरा परमहित समझकर माफ कर दीजिए।' इस पर कई ऋषि, मुनी और देवगण वहां एकत्र हो गए और भगवान्‌ शिव से अनुमोदन किया कि वो हमेशा के लिए वहां निवास करें। ऋषि, मुनी और देवगण की बात मानकर शिव जी त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से यहां स्थित हो गए।