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Lolark Kund: कोरोना में सूना पड़ा है वाराणसी लोलार्क कुंड, जानें क्या है यहां स्नान करने का महत्व

Lolark Kund हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को लोलार्क षष्ठी मनाई जाती है। लोलार्क षष्ठी को ललई छठ के नाम से भी जाना जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 24 Aug 2020 10:20 AM (IST)
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Lolark Kund: कोरोना में सूना पड़ा है वाराणसी लोलार्क कुंड, जानें क्या है यहां स्नान करने का महत्व
Lolark Kund: पूरे देश में कोरोना ने कहर बरपाया हुआ है। कोरोना ही एक मात्र कारण है कि लोग इस बार अपने त्योहारों या पर्वों को धूमधाम से नहीं मना पा रहे हैं। वहीं, कई क्षेत्रों में इन दिनों मेलों का आयोजन होता है जो इस वर्ष सोशल डिस्टेंसिंग के तहत रद्द कर दिए गए हैं। इन्हीं में से एक है लोलार्क कुंड का मेला। हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को लोलार्क षष्ठी मनाई जाती है। लोलार्क षष्ठी को ललई छठ के नाम से भी जाना जाता है। तिथि के अनुसार, लोलार्क पष्ठी रविवार 23 अगस्त को रात्रि 09:07 से लगकर 24 अगस्त को सायं 06:41 तक रहेगी। इस दिन वाराणसी में स्थित लोलार्क कुंड में स्नान करने का विधान है। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से नि:संतान दम्पत्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र ने बताया, लोलार्क षष्ठी (ललई छठ) पर वाराणसी स्थित लोलार्क कुंड पर स्नान करने से नि:संतान दंपति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से कई दंपतियों को पुत्र सुख का लाभ मिला है। इसी मान्यता के चलते हर साल लोलार्क छठ पर इस कुंड में लोग डुबकी लगाने आते हैं जो इस वर्ष नहीं हो पाएगा। कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने वाले नि:संतान दंपति को नहाने के बाद अपने कपड़े वहीं छोड़कर जाने होते हैं। इस दौरान महिलाओं को श्रृंगार आदि की सामग्री भी वहीं छोड़न होती है।

एक कथा के अनुसार, विद्युन्माली दैत्य शिव भक्त था। जब इस दैत्य को सूर्य ने हरा दिया तब भगवान सूर्य पर क्रोधित हो गए थे और रुद्र त्रिशूल हाथ में लेकर उनकी ओर दौड़ पड़े थे। उस समय सूर्य भागते-भागते पृथ्वी पर काशी में आ गिरे थे। इसी कारण से वहां का नाम लोलार्क नाम पड़ा था। सप्तमीप्रयुक्त भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को स्नान, दान, जप और व्रत करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। खासतौर से अगर सूर्य का पूजन, गंगा का दर्शन और पंचगव्यप्राशन किया जाए तो अश्वमेध के समान फल होता है। इस पूजन में गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य मुख्य हैं। इनके अलावा साधू संन्यासी लोग भी यहां मोक्ष पाने के लिए स्नान करते हैं। विधान है कि यहां पर एक फल का त्याग भी करना होता है। यहां एक फल का त्याग करने का भी विधान है।