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इस मंदिर में देव दर्शन से होती है मोक्ष की प्राप्ति, भगवान राम से जुड़ा है कनेक्शन

हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष मनाया जाता है। इस दौरान पितृ धरती पर आते हैं। इसके लिए पितृपक्ष के दौरान पितरों का तर्पण और पिंडदान किया जाता है। इस शुभ अवसर पर श्रद्धालु पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए गया में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर (Vishnupad Temple) के सम्मुख पिंडदान करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Tue, 02 Jul 2024 09:20 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jul 2024 09:20 PM (IST)
Vishnupad Temple: कब मनाया जाता है पितृ पक्ष?

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Vishnupad Temple in Bihar: जगत के पालनहार भगवान विष्णु की लीला अपरंपार है। धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने हर युग में अवतार लिया है। त्रेता युग में भगवान श्रीराम रूप में अवतिरत हुए थे। वहीं, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण रूप में अवतिरत हुए थे। जबकि, कलयुग में कल्कि रूप में उनका अवतरण होगा। इसके अलावा, कई अन्य रूपों में भी भगवान विष्णु का अवतरण हो चुका है। भगवान विष्णु के दशावतार का वर्णन विष्णु पुराण में निहित है। भगवान विष्णु के उपासकों को वैष्णव कहा जाता है। वर्तमान समय में देश भर में भगवान विष्णु के कई विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं। इनमें एक मंदिर बिहार के गया में स्थित है। इस मंदिर में देव दर्शन यानी भगवान विष्णु के दर्शन मात्र से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए, इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा एवं महत्व जानते हैं।

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कथा

सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में गयासुर नामक असुर भगवान विष्णु का परम भक्त था। अपनी भक्ति से गयासुर ने भगवान विष्णु को प्रसन्न कर सर्वोत्तम वरदान प्राप्त कर लिया था। इस वरदान के अनुसार, गयासुर जगत के पालनहार भगवान विष्णु के परम और पवित्र भक्त थे। तत्कालीन समय में गयासुर के दर्शन से सामान्यजन के पाप नष्ट हो जाते थे। इसके लिए रोजाना बड़ी संख्या में लोग गयासुर के दर्शन हेतु गया आते थे। गयासुर की ख्याति न केवल पृथ्वी बल्कि तीनों लोकों में फैल गई।

ऐसा भी कहा जाता है कि गयासुर के दर्शन से व्यक्ति को मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती थी। स्वर्ग प्राप्ति के इच्छुक लोक गयासुर के अवश्य ही दर्शन करते थे। इसके चलते स्वर्ग और गया में लोगों की भीड़ जुटने लगी। इससे स्वर्ग नरेश बेहद चिंतित हो उठे। उस समय देवताओं ने भगवान विष्णु से गयासुर की भक्ति से मुक्ति दिलाने की याचना की। तब भगवान विष्णु, ब्रह्मा जी द्वारा नियोजित यज्ञ में गयासुर के शरीर पर विराजमान हो गए। यह यज्ञ गयासुर की सहमति के बाद गया में हो रहा था।

इस यज्ञ को स्वयं ब्रह्मा जी करवा रहे थे। जब भूमि पर लेटा गयासुर बिल्कुल भी विचलित नहीं हुआ। उस समय भगवान विष्णु अपने परम भक्त गयासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर बोले- हे गयासुर! तुमने अपनी भक्ति से मुझे प्रसन्न किया। वर मांगो वत्स! तब गयासुर ने अपने वचनों से भगवान विष्णु को आश्चर्यचकित कर दिया। गयासुर बोला- हे भगवान! अगर आप मुझसे प्रसन्न हैं तो आप मुझे वरदान दें कि आप इस स्थान पर सदैव विराजमान रहेंगे। तब भगवान विष्णु ने गयासुर को वरदान दिया कि जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से इस स्थान पर मेरी पूजा और दर्शन करेगा। उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण होंगी। साथ ही मृत्यु के बाद व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होगी। वहीं, गयासुर के नाम पर ही इस स्थान का नाम गया पड़ा। कालांतर से इस स्थान पर पिंडदान किया जाता है। भगवान श्रीराम (Lord Ram) ने भी अपने पितरों का तर्पण गया में किया था।

विष्णुपद मंदिर

यह मंदिर बिहार राज्य के गया जिले में फल्गु नदी के तट पर स्थित है। कहते हैं कि असुर गयासुर के ऊपर पैर रखने के चलते यह मंदिर विष्णुपद नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि गयासुर के ऊपर रखने से वह भूमि में दब गया था। कालांतर में गयासुर पत्थर रूप में परिवर्तित हो गया था। वर्तमान समय में यह मंदिर पिंडदान स्थल के लिए जाना जाता है। हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों को मोक्ष दिलाने हेतु गया आते हैं और फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करते हैं। विष्णुपद मंदिर के निर्माण की तिथि अज्ञात है। इतिहासकारों की मानें तो अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु के 40 सेमी लंबे पदचिह्न हैं। मंदिर की वास्तुकला अनुपम है।

कैसे पहुंचे विष्णुपद मंदिर ?

अगर आप देश की राजधानी और उसके आसपास से गया जाना चाहते हैं, तो तीनों माध्यमों से गया पहुंच सकते हैं। श्रद्धालु वायु मार्ग के जरिए गया पहुंच सकते हैं। वहीं, रेल मार्ग के जरिए पटना होकर भी गया जा सकते हैं। अन्य स्थानों से श्रद्धालु वायु मार्ग के जरिए पवित्र नगरी गया जा सकते हैं। पितृ पक्ष और बुद्ध जयंती के समय में बड़ी संख्या में श्रद्धालु देव दर्शन और पिंडदान हेतु गया जाते हैं।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।


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