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हनुमान धारा मंदिर क्‍यों है इतना खास

इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है। इसीलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं। इस के दर्शन से हर एक व्यक्ति का तनाव से मुक्त हो जाता है तथा मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है।

By Preeti jhaEdited By: Updated: Tue, 15 Nov 2016 09:27 AM (IST)
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हनुमान धारा के बारे में कहा जाता है की जब श्री हनुमान जी ने लंका में आग लगाई उसके बाद उनकी पूंछ में लगी आग को बुझाने के लिए वो इस जगह आये जिन्हे भक्त हनुमान धारा कहते है | यह विन्ध्यास के शुरुआत में राम घाट से 4 किलोमीटर दुर है | एक चमत्कारिक पवित्र और ठंडी जल धारा पर्वत से निकल कर हनुमान जी की मूरत की पूँछ को स्नान कराकर निचे कुंड में चली जाती है | कहा जाता है की जब हनुमानजी ने लंका में अपनी पूँछ से आग लगाई थी तब उनकी पूँछ पर भी बहूत जलन हो रही थी | रामराज्य में भगवन श्री राम से हनुमानजी विनती की जिससे अपनी जली हुई पूँछ का इलाज हो सके | तब श्री राम ने अपने बाण के प्रहार से इसी जगह पर एक पवित्र धारा बनाई जो हनुमान जी की पूँछ पर लगातार गिरकर पूँछ के दर्द को कम करती रही | यह जगह पर्वत माला पर है |

हनुमान धारा वर्तमान में यह चित्रकूट स्थान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की करवी (कर्वी) तहसील तथा मध्यप्रदेश के सतना जिले की सीमा पर स्थित है। चित्रकूट का मुख्य स्थल सीतापुर है जो कर्वी से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर नामक स्थान के समीप यह हनुमान मंदिर स्थापित है।

सीतापुर से हनुमान धारा की दूरी तीन मील है। यह स्थान पर्वतमाला के मध्यभाग में स्थित है। पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है।

इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है। इसीलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं। वहां एक ओर पौराणिकता का भव्य नजारा देखने को मिलता है तो वहीं श्रीराम की कृपा भक्तशिरोमणि हनुमान जी पर कितनी थी, इसका भी संकेत मिलता है।

कथा है श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने भगवान श्रीरामचंद्र से कहा ‘हे प्रभु, लंका को जलाने के बाद तीव्र अग्नि से उत्पन्न गरमी मुझे बहुत कष्ट दे रही है। मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं इससे मुक्ति पा सकूं। इस कारण मैं कोई अन्य कार्य करने में बाधा महसूस कर रहा हूं। कृपया मेरा संकट दूर करें।’ तब प्रभु श्रीराम ने मुस्कराते हुए कहा, ‘चिंता मत करो। भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को यह स्थान बताया। आप चित्रकूट पर्वत पर जाइये। वहां आपके शरीर पर अमृत तुल्य शीतल जलधारा के लगातार गिरने से आपको इस कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी।’

हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत श्रंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का पाठ 1008 बार किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ ऊपर से एक जल की धारा प्रकट हो गयी। जलधारा शरीर में पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा के निरंतर गिरती है। जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के रूप में जाना जाता है। धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। उसे लोग प्रभाती नदी या पातालगंगा कहते हैं।

चित्रकूट - वाल्मीकि रामायण, महाभारत पुराण स्मृति उपनिषद व साहित्यक पोराणिक साक्ष्यों में खासकर कालिदास कृत मेघदुतम में चित्रकुट का विशद विवरण प्राप्त होता है। त्रेतायुग का यह तीर्थ अपने गर्भ में संजोय स्वर्णिम प्राकृतिक दृश्यावलियों के कारण ही चित्रकूट के नाम से प्रसिध्द है जो लगभग 11 वर्ष तक श्रीराम माता सिता व भ्राता लक्ष्मण की आश्रय स्थली बनी रही। यही मंदाकिनी पयस्विनी और सावित्री के संगम पर श्रीराम ने पितृ तर्पण किया था। श्रीराम व भ्राता भरत के मिलन का साक्षी यह स्थल श्रीराम के वनवास के दिनों का साक्षात गवाह है, जहां के असंख्य प्राच्यस्मारकों के दर्शन के रामायण युग की परिस्थितियों का ज्ञान हो जाता है।

ब्रह्मा, विष्णु और महेश चित्रकुट तीर्थ में ही इहलोकोका गमन हुआ था यहां के सती अनुसूया के आश्रम को इस कथा के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। चित्रकूट का विकास राजा हर्षवर्धन के जमाने में हुआ। मुगल काल में खासकर स्वामी तुलसीदासजी के समय में यहां की प्रतिष्ठा प्रभा पुनः मुखारिन हो उठी।

भारत के तीर्थों में चित्रकुट को इसलिए भी गौरव प्राप्त है कि इसी तीर्थ में भक्तराज हनुमान की सहायता से भक्त शिरोमणि तुलसीदास को प्रभु श्रीराम के दर्शन हुए। यहां हनुमान जी ने अग्नि शांत की

यूं तो भारत में एक से बढ़ कर एक हनुमान जी के भव्य मंदिर हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के बांदा से लगे मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित चित्रकूट धाम के हनुमान धारा मंदिर की बात ही कुछ और है। आज भी वहां हनुमान जी की बायीं भुजा पर लगातार जल गिरता नजर आता है। वहां विराजे हनुमान जी की आंखों को देख कर ऐसा लगता है, मानो हमें देख कर वह मुस्करा रहे हैं। साथ में भगवान श्रीराम का छोटा-सा मंदिर भी वहां है।

हनुमान धारा : यहां पर पंचमुखी हनुमान की प्रतिमा है। यह लगभग 100 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। जब श्रीराम लंका विजय से वापस लौट रहे थे, तब उन्होंने हनुमान के विश्राम के लिए इस स्थल का निर्माण किया था। यहीं पर पहाड़ी की चोटी पर `सीता रसोई' स्थित है।

भक्तगणों द्वारा पंखा तथा अन्य दान की गई वस्तुओं के विषय में कई तरह के नाम लिखित पत्थर भी हैं वहां। सिंदूर और तेल में रचे-बसे हनुमान जी के दर्शनों से पहले नीचे बने कुंड में हाथ-मुंह धोना कोई भी भक्तगण नहीं भूलता। सीढ़ियां कहीं सीधी हैं तो कहीं घुमावदार। कोई पुराने रास्ते से आ रहा है, कोई सीमेंट की बनी सीढ़ियों पर चल रहा है। लेकिन सावधान! बंदरों को चना खिलाते वक्त कई बार अप्रिय स्थिति भी पैदा हो जाती है। रास्ते भर प्राकृतिक दृश्यों को देख कर मन यहां बार-बार आने को करता है। हनुमान धारा से ठीक 100 सीढ़ी ऊपर सीता रसोई है, जहां माता सीता ने भोजन बना कर भगवान श्रीराम और देवर लक्ष्मण को खिलाया था। निकटतम रेलवे स्टेशन कर्वी है, जो इलाहाबाद से 120 किलोमीटर दूर है। मंगलवार और शनिवार के अलावा नवरात्रों और हनुमान जी के दोनों जन्मदिनों पर (हनुमान जी के जन्मदिन पर विद्वानों में मतभेद है) श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ होती है।

यह धारा रामघाट से लगभग 4 कि.मी. दूर है। इसका जल शीतल और स्वच्छ है। 365 दिन यह जल आता रहता है। यह जल कहां से आता है यह किसी को जानकारी नहीं है। यदि किसी व्यक्ति को दमा की बिमारी है तो यह जल पीने से काफी लोगों को लाभ मिला है। यह मंदिर पहाडी पर स्थित है। बहुत सुंदर द्विय मुर्ति है। इस के दर्शन से हर एक व्यक्ति का तनाव से मुक्त हो जाता है तथा मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है।