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Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष में क्यों सत्तू खाने की है मनाही और कहां है प्रेतशिला?

ज्योतिषियों की मानें तो पितृ दोष (Sattu Pitru Paksha 2024) लगने पर जातक को जीवन में नाना प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए पितृ दोष निवारण अनिवार्य है। इसके साथ ही पितृपक्ष के दौरान पितरों का तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है। पितरों का तर्पण एवं पिंडदान करने से तीन पीढ़ी के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 18 Sep 2024 02:42 PM (IST)
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Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष का धार्मिक महत्व

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है। यह पक्ष पितरों को समर्पित होता है। इस दौरान पितरों का तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में पितृ धरती पर आते हैं। इस शुभ अवसर पर पितरों का तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों का तर्पण करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष (Shradh Paksha 2024) के दौरान दान-पुण्य भी किया जाता है। धार्मिक मत है कि पितृ के प्रसन्न रहने पर जातक को जीवन में सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही वंश में वृद्धि होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि अकाल मृत्यु से मरने वाले जातकों का पिंडदान कहां किया जाता है और क्यों पितृपक्ष के दौरान सत्तू खाने की मनाही है? आइए जानते हैं-

अकाल मृत्यु क्या है ?

गरुड़ पुराण की मानें तो मृत्यु प्राकृतिक और अप्राकृतिक दो प्रकार से होती है। असमय मौत को अकाल मृत्यु कहा जाता है। आसान शब्दों में कहें तो किसी व्यक्ति का असमय मौत हो जाना ही अकाल मृत्यु है। दुर्घटना में मौत, नदी में डूबना, आत्महत्या करना आदि अकाल मृत्यु के प्रकार हैं। अकाल मृत्यु से मरने वाले जातक का श्राद्ध कर्म प्रेतशिला में किया जाता है। अगर अकाल मृत्यु से मरने वाले जातक का श्राद्ध कर्म घर पर किया जाता है, तो आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। आत्मा प्रेतयोनि में भटकती रहती है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि प्रेतशिला में पिंडदान करने से भटकती आत्मा को यथाशीघ्र मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके लिए प्रेतशिला में पितृपक्ष के दौरान बड़ी संख्या में साधक अपने पितरों को मोक्ष दिलाने हेतु पिंडदान करते हैं। प्रेतशिला में सत्तू का पिंडदान किया जाता है। इसके लिए पितृपक्ष के दौरान सत्तू (Sattu Prohibition Pitru Paksha) खाने की मनाही होती है।

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कहां है प्रेतशिला?

गया अपनी धार्मिक विरासत के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस शहर में फल्गु नदी के तट पर पितरों का तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है। धार्मिक मत है कि गया में पितरों का तर्पण एवं पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु के परम भक्त गयासुर के नाम पर इस पावन तीर्थ स्थल का नाम गया पड़ा। गया न केवल सनातन, बल्कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए पावन तीर्थ स्थल है। भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति बोधगया में हुई थी।

गया से 10 किलोमीटर की दूरी पर प्रेतशिला पर्वत है। इसके शिखर पर एक वेदी है, जिसे प्रेतशिला वेदी कहा जाता है। अकाल मृत्‍यु से मरने वाले पितरों का प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान करने से पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है। अकाल मृत्यु से मरने वाले पितरों का पिंडदान सत्तू ((Pitru Paksha Sattu Significance) से किया जाता है। वहीं, पिंडदान के बाद सत्तू को उड़ाया जाता है, जिसे पितर प्राप्त करते हैं। प्रेतशिला में पिंडदान से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।