यहां युधिष्ठिर ने पूजा कर मां शर्करा की स्थापना की थी वही अब शाकंभरी तीर्थ है
इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था। भारत के आठशक्ति पीठों में से यह एक है। यह भव्य मंदिर कई प्रकार के औषधि वृक्ष भी इस शांत मालकेतु घाटी (अरावली पर्वत) में पाये जाते हैं
By Preeti jhaEdited By: Updated: Mon, 09 Jan 2017 03:23 PM (IST)
श्री शाकम्भरी माता मन्दिर, गाँव सकराय सीकर (राजस्थान) सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां,
पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव अपने भाइयों व परिजनों का युद्ध में वध (गोत्र हत्या) के पाप से मुक्ति पाने के लिए अरावली की पहाडिय़ों में रुके। युधिष्ठिर ने पूजा अर्चना के लिए देवी मां शर्करा की स्थापना की थी। वही अब शाकंभरी तीर्थ है।श्री शाकम्भरी माता गाँव सकराय यह आस्था केन्द्र सुरम्य घाटियों के बीच बना शेखावटी प्रदेश के सीकर जिले में यह मंदिर स्थित है। यह मंदिर सीकर से 56 किमी. दूर अरावली की हरी वादीयों में बसा है। झुंझनूँ जिले के उदयपुरवाटी के समीप है। यह मंदिर उदयपुरवाटी गाँव से 16 किमी. पर है। यहाँ के आम्रकुंज, स्वच्छ जल का झरना आने वाले व्यक्ति का मन मोहित करते हैं। इस शक्तिपीठ पर आरंभ से ही नाथ संप्रदाय वर्चस्व रहा है जो आज तक भी है। यहाँ देवी शंकरा, गणपति तथा धन स्वामी कुबेर की प्राचीन प्रतिमाएँ स्थापित हैं। यह मंदिर खंडेलवाल वैश्यों की कुल देवी के मंदिर के रूप में विख्यात है। इसमें लगे शिलालेख के अनुसार मंदिर के मंडप आदि बनाने में धूसर और धर्कट के खंडेलवाल वैश्यों सामूहिक रूप से धन इकट्ठा किया था। विक्रम संवत 749 के एक शिलालेख प्रथम छंद में गणपति, द्वितीय छंद में नृत्यरत चंद्रिका एवं तृतीय छंद में धनदाता कुबेर की भावपूर्ण स्तुति लिखी गई है।
इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था। भारत के आठशक्ति पीठों में से यह एक है। यह भव्य मंदिर विभिन्न प्रकार के वृक्षों से घिरा है तथा कई प्रकार के औषधि वृक्ष भी इस शांत मालकेतु घाटी (अरावली पर्वत) में पाये जाते हैं। शंकर गंगा नदी बारिश के दिनों में इस मंदिर के पास से बहती है। भक्तों को पवित्र स्नान करने हेतु कई घाट बनवाये गये हैं। इस मंदिर के आसपास अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में जटा शंकर मंदिर तथा श्री आत्म मुनि आश्रम शामिल है। भक्तगण सालभर इस मंदिर में आते रहते हैं, लेकिन हिंदु कॅलेंड़र के अनुसार महिने के आठवे, नौवें तथा दसवें दिन देवी भगवती की विशेष प्रार्थना के होते हैं। नवरात्रों के दौरान नौ दिन का उत्सव यहाँ होता है।इस तीर्थ का उल्लेख महाभारत, वनपर्व के तीर्थयात्रा प्रसंग में इस श्लोक के मध्यान से किया गया है। श्लोक:
“ततो गच्छेत् राजेन्द्र देव्याः स्थानं सुदुर्लभम,शाकम्भरीति विख्याता त्रिषु लोकेषु विश्रुता