Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया पर पूजा के समय जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, अन्न-धन से भर जाएंगे भंडार
धार्मिक मत है कि अक्षय तृतीया पर मां लक्ष्मी की पूजा करने से आय सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही साधक पर मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है। ज्योतिषियों की मानें तो अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना बेहद शुभ होता है। इसलिए लोग अक्षय तृतीया पर स्वर्ण आभूषणों की खरीदारी करते हैं। इस दिन सभी प्रकार के मांगलिक कार्य किए जाते हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 06 May 2024 04:55 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Akshaya Tritiya 2024: हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर अक्षय तृतीया मनाया जाता है। इस वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया 10 मई को है। अतः 10 मई को अक्षय तृतीया है। इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मत है कि अक्षय तृतीया पर मां लक्ष्मी की पूजा करने से आय, सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही साधक पर मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है। ज्योतिषियों की मानें तो अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना बेहद शुभ होता है। अत: लोग अक्षय तृतीया पर स्वर्ण आभूषण की खरीदारी करते हैं। इस दिन सभी प्रकार के मांगलिक कार्य किए जाते हैं। अगर आप भी मां लक्ष्मी की कृपा पाना चाहते हैं, तो अक्षय तृतीया पर पूजा के समय यह कथा जरूर पढ़ें-
सनातन शास्त्रों में निहित है कि द्वापर युग में पांडवों को लंबे समय तक राज्य से बाहर रहना पड़ा था। एक बार पांडव अज्ञातवास में रह रहे थे। ऋषि दुर्वासा ने अपने शिष्य के जरिए यह संदेश भिजवाया कि वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर वे (ऋषि दुर्वासा) अपने शिष्यों के साथ भोजन हेतु घर पधारने वाले हैं। ऋषि दुर्वासा के शिष्य यह संदेश लेकर उस समय पहुंचे, जब पांडव भोजन ग्रहण कर चुके थे।
यह संदेश पाकर पांडव चिंतित हो उठे कि उन लोगों ने तो भोजन प्राप्त कर लिया है। रसोई गृह में अब भोजन भी नहीं है। ऐसी स्थिति में ऋषि दुर्वासा और उनके शिष्यों को कैसे भोजन कराया जाएगा ? तत्कालीन समय में ऋषि दुर्वासा अपने गुस्से के लिए जाने जाते थे। इच्छा पूरी न होने पर ऋषि दुर्वासा तत्क्षण ही शाप दे देते थे। अगर भोजन नहीं मिलता, तो ऋषि दुर्वासा पांडवों को भी शाप दे सकते थे। उस समय द्रौपदी ने जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण से सहायता हेतु प्रार्थना की।
यह जान भगवान श्रीकृष्ण पांडव के अज्ञातवास गृह पर आये। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने भोजन पात्र में एक चावल पड़ा देखा। मूरली मनोहर ने चावल उठाकर ग्रहण (खा लिया) कर लिया। इससे भोजन पात्र तत्क्षण अक्षय पात्र में बदल गया। अक्षय का आशय कभी न खत्म होने वाला है। इसके बाद ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ पांडवों के घर पधारे। उस समय द्रौपदी ने सभी को भोजन कराया। इसके बावजूद अन्न पात्र में भोजन कम नहीं हुआ।
यह भी पढ़ें: किसी भी संबंध में आकर्षण का नहीं, प्रेम का होना आवश्यक हैडिस्क्लेमर-''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'