Ashadh Gupt Navratri 2024: गुप्त नवरात्र में इस विधि से करें मां दुर्गा की पूजा, जीवन सदैव रहेगा खुशहाल
गुप्त नवरात्र (Gupt Navratri 2024 2024) के दौरान दस महाविद्याओं की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं (Das Mahavidyas) की सच्चे मन से पूजा करने से जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन सदैव खुशहाल रहता है। ऐसे में आइए जानते हैं गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना किस तरह करनी चाहिए?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ashadh Gupt Navratri 2024 Start Date and Date: सनातन धर्म में नवरात्र के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। हर साल 4 बार नवरात्र का त्योहार मनाया जाता है। जिसमें से 2 प्रकट नवरात्र और 2 गुप्त नवरात्र होते हैं। प्रकट नवरात्र चैत्र और आश्विन माह में होते हैं। वहीं, गुप्त नवरात्र माघ और आषाढ़ माह में पड़ते हैं। गुप्त नवरात्र के दौरान दस महाविद्याओं की पूजा गुप्त रूप से की जाती है। इसलिए इसे गुप्त नवरात्र के नाम से जाना जाता है।
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इस दिन से शुरू हो रहे हैं गुप्त नवरात्र 2024 (Gupt Navratri 2024 Start Date and Date)
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 06 जुलाई को सुबह 04 बजकर 26 मिनट से होगी। वहीं, इसका समापन 07 जुलाई को सुबह 04 बजकर 26 मिनट पर होगा। ऐसे में इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्र 6 जुलाई से लेकर 15 जुलाई तक है।
गुप्त नवरात्र पूजा विधि (Gupt Navratri Puja Vidhi)
गुप्त नवरात्र के पहले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। मंदिर की सफाई करें और मां दुर्गा की प्रतिमा विराजमान करें। उनका विधिपूर्वक अभिषेक करें। लाल चुनरी समेत 16 शृंगार की सामग्री अर्पित करें। इसके पश्चात रोली, चंदन, अक्षत और फूल माला चढ़ाएं। देशी घी का दीपक जलाकर आरती करें और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। मंत्रो का भी जप करें। माता रानी को फल और मिठाई समेत आदि चीजों का भोग लगाएं। अंत में लोगों में प्रसाद का वितरण करें।
पूजा के दौरान इन मंत्रों का जप करें
1. पाप नाशक मंत्र
हिनस्ति दैत्येजंसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥
2. संकट से मुक्ति के लिए मंत्र
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तुते ॥
3. रोग रक्षा मंत्र
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥
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