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Masik Kalashtami 2024: कालाष्टमी की पूजा में जरूर करें इन मंत्रों का जप, सभी सुखों की होगी प्राप्ति

पंचांग के अनुसार आश्विन माह में कालाष्टमी 25 सितंबर (Masik Kalashtami 2024 Date) को मनाई जाएगी। इस दिन काल भैरव की पूजा-अर्चना संध्याकाल में करने का विधान है। साधक विशेष कार्य में सफलता प्राप्ति के लिए व्रत करते हैं और श्रद्धा अनुसार गरीब लोगों में दान करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Tue, 17 Sep 2024 06:02 PM (IST)
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Masik Kalashtami 2024: मासिक कालाष्टमी पूजा के मंत्र
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kalashtami 2024: सनातन धर्म में मासिक कालाष्टमी का पर्व अधिक शुभ माना जाता है। यह पर्व हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाता है। इस शुभ तिथि पर भगवान शिव के उग्र स्वरूप काल भैरव की उपासना की जाती है। इससे साधक को जीवन में व्याप्त समस्त प्रकार के दुख और संकट से मुक्ति मिलती है। कालाष्टमी की पूजा के दौरान काल भैरव कके मंत्रों का जप करना चाहिए। मंत्रों के जप से प्रभु साधक की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

काल भैरव देव के मंत्र

1. ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।

2. ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।

3. ॐ ह्रीं बटुक! शापम विमोचय विमोचय ह्रीं कलीं।

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4. र्मध्वजं शङ्कररूपमेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम् ।

द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये ।।

5. ॐ नमो भैरवाय स्वाहा।

6. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय भयं हन।

7. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय शत्रु नाशं कुरु।

8. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय तंत्र बाधाम नाशय नाशय।

9. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय कुमारं रक्ष रक्ष।

10. श्री बम् बटुक भैरवाय नमः।

ॐ क्रीं क्रीं कालभैरवाय फट।

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।

ॐ काल भैरवाय नमः।

ॐ श्री भैरवाय नमः।

ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्।

काल भैरव स्तुति

यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं

सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटाशेखरं चन्द्रबिम्बम्।।

दं दं दं दीर्घकायं विकृतनखमुखं चोर्ध्वरोमं करालं

पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।

रं रं रं रक्तवर्णं कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं

घं घं घं घोषघोषं घ घ घ घ घटितं घर्घरं घोरनादम्।।

कं कं कं कालपाशं धृकधृकधृकितं ज्वालितं कामदेहं

तं तं तं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।

लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घजिह्वाकरालं

धुं धुं धुं धूम्रवर्णं स्फुटविकटमुखं भास्करं भीमरूपम्।।

रुं रुं रुं रुण्डमालं रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालं

नं नं नं नग्नभूषं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।

वं वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मपारं परं तं

खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करं भीमरूपम्।।

चं चं चं चं चलित्वा चलचलचलितं चालितं भूमिचक्रं

मं मं मं मायिरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।

शं शं शं शङ्खहस्तं शशिकरधवलं मोक्षसंपूर्णतेजं

मं मं मं मं महान्तं कुलमकुलकुलं मन्त्रगुप्तं सुनित्यम्।।

यं यं यं भूतनाथं किलिकिलिकिलितं बालकेलिप्रधानं

अं अं अं अन्तरिक्षं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।

खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं कालकालं करालं

क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं दहदहदहनं तप्तसन्दीप्यमानम्।।

हौं हौं हौंकारनादं प्रकटितगहनं गर्जितैर्भूमिकम्पं

बं बं बं बाललीलं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।

सं सं सं सिद्धियोगं सकलगुणमखं देवदेवं प्रसन्नं

पं पं पं पद्मनाभं हरिहरमयनं चन्द्रसूर्याग्निनेत्रम्।।

ऐं ऐं ऐश्वर्यनाथं सततभयहरं पूर्वदेवस्वरूपं

रौं रौं रौं रौद्ररूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।

हं हं हं हंसयानं हपितकलहकं मुक्तयोगाट्टहासं

धं धं धं नेत्ररूपं शिरमुकुटजटाबन्धबन्धाग्रहस्तम्।।

टं टं टं टङ्कारनादं त्रिदशलटलटं कामवर्गापहारं

भृं भृं भृं भूतनाथं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।

इत्येवं कामयुक्तं प्रपठति नियतं भैरवस्याष्टकं यो

निर्विघ्नं दुःखनाशं सुरभयहरणं डाकिनीशाकिनीनाम्।।

नश्येद्धिव्याघ्रसर्पौ हुतवहसलिले राज्यशंसस्य शून्यं

सर्वा नश्यन्ति दूरं विपद इति भृशं चिन्तनात्सर्वसिद्धिम् ।।

भैरवस्याष्टकमिदं षण्मासं यः पठेन्नरः।।

स याति परमं स्थानं यत्र देवो महेश्वरः ।।

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