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Bhadrapada Purnima पर जगत के पालनहार को इस तरह करें प्रसन्न, सभी सुखों की होगी प्राप्ति

पूर्णिमा के त्योहार का विशेष महत्व है। भाद्रपद माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को भाद्रपद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार 17 सितंबर (Bhadrapada Purnima 2024 Date) को पूर्णिमा व्रत रखा जाएगा। वहीं 18 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा मनाई जाएगी। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए विष्णु चालीसा का पाठ करना फलदायी साबित होता है।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Wed, 11 Sep 2024 09:58 AM (IST)
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Lord Vishnu: पूर्णिमा तिथि मानी जाती है खास

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सभी पर्व पर किसी न किसी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करने का विधान है। ठीक इसी प्रकार पूर्णिमा तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की उपासना की जाती है। साथ ही श्रद्धा अनुसार गरीब लोगों में दान किया जाता है। इसके अलावा भाद्रपद पूर्णिमा की पूजा के दौरान विधिपूर्वक विष्णु चालीसा का पाठ करें। मान्यता है कि विष्णु चालीसा (Vishnu Chalisa) के पाठ से साधक को सभी सुखों की प्राप्ति होती है और दुख-संकट से मुक्ति मिलती है। विष्णु चालीसा का पाठ इस प्रकार है-

इस विधि से करें विष्णु चालीसा का पाठ

  • भाद्रपद पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठें।
  • स्नान करने के बाद पीले वस्त्र धारण करें, क्योंकि श्री हरि को पीला रंग प्रिय है।
  • सूर्य देव को जल अर्पित करें।
  • विधिपूर्वक भगवान विष्णु की उपासना करें।
  • चंदन और फूलमाला अर्पित करें।
  • दीपक जलाकर आरती करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें।
  • प्रभु को फल समेत आदि चीजों का भोग लगाएं।

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।।विष्णु चालीसा का पाठ।।

''दोहा''

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।

कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।

प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।

तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥

शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।

सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।

सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।

करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।

भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥

आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।

धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।

देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।

शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।

मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥

असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।

हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।

तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।

हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।

गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥

हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।

देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥

चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।

जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।

करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।

सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।

पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।

निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥

॥ इति श्री विष्णु चालीसा ॥

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