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Pradosh Vrat 2024: भौम प्रदोष व्रत पर पूजा के समय करें इस मंगलकारी स्तोत्र का पाठ, आर्थिक तंगी से मिलेगी निजात

शिव पुराण में प्रदोष व्रत की महिमा का गुणगान किया गया है। इस व्रत को करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। भौम प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2024 Significance) करने से करियर और कारोबार को नया आयाम मिलता है। इसके अलावा सुख और सौभाग्य में समय के साथ वृद्धि होती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 14 Oct 2024 09:45 PM (IST)
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Pradosh Vrat 2024: भौम प्रदोष व्रत के लाभ

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, 15 अक्टूबर को प्रदोष व्रत है। प्रदोष व्रत का फल दिन अनुसार प्राप्त होता है। मंगलवार के दिन पड़ने के चलते यह भौम प्रदोष व्रत कहलाएगा। भौम प्रदोष व्रत करने से आर्थिक या कर्ज संबंधी परेशानी दूर होती है। साथ ही आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस तिथि पर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। साथ ही महादेव की कृपा भी बरसती है। अगर आप भी आर्थिक तंगी से निजात पाना चाहते हैं, तो भौम प्रदोष व्रत पर स्नान-ध्यान के बाद विधि पूर्वक शिव-शक्ति की पूजा करें। इसके साथ ही पूजा के समय ऋण मोचन स्तोत्र का पाठ करें।

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पूजा विधि

आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इस समय भगवान शिव का ध्यान कर दिन की शुरुआत करें। अब नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान करें। इस समय आचमन करें। अब श्वेत वस्त्र का धारण कर सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। इसके पश्चात, पूजा गृह में गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। अब एक चौकी पर शिव परिवार की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। अब पंचोपचार कर विधि-विधान से शिव शक्ति की पूजा करें। भगवान शिव को पूजा के समय फल, फूल, भांग, धतूरा, मदार के फूल आदि चीजें अर्पित करें। पूजा के दौरान ऋण मोचन स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

ऋणमोचन अङ्गारकस्तोत्रम्

रक्तमाल्याम्बरधरः शूलशक्तिगदाधरः ।

चतुर्भुजो मेषगतो वरदश्च धरासुतः ॥

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।

स्थिरासनो महाकायो सर्वकामफलप्रदः ॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।

धरात्मजः कुजो भौमो भूमिदो भूमिनन्दनः ॥

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।

सृष्टेः कर्ता च हर्ता च सर्वदेशैश्च पूजितः ॥

एतानि कुजनामानि नित्यं यः प्रयतः पठेत् ।

ऋणं न जायते तस्य श्रियं प्राप्नोत्यसंशयः ॥

अङ्गारक महीपुत्र भगवन् भक्तवत्सल ।

नमोऽस्तु ते ममाशेषं ऋणमाशु विनाशय ॥

रक्तगन्धैश्च पुष्पैश्च धूपदीपैर्गुडोदनैः ।

मङ्गलं पूजयित्वा तु मङ्गलाहनि सर्वदा ॥

एकविंशति नामानि पठित्वा तु तदन्तिके ।

ऋणरेखा प्रकर्तव्या अङ्गारेण तदग्रतः ॥

ताश्च प्रमार्जयेन्नित्यं वामपादेन संस्मरन् ।

एवं कृते न सन्देहः ऋणान्मुक्तः सुखी भवेत् ॥

महतीं श्रियमाप्नोति धनदेन समो भवेत् ।

भूमिं च लभते विद्वान् पुत्रानायुश्च विन्दति ॥

मूलमन्त्रः

अङ्गारक महीपुत्र भगवन् भक्तवत्सल ।

नमस्तेऽस्तु महाभाग ऋणमाशु विनाशय ॥

अर्घ्यम् । भूमिपुत्र महातेजः स्वेदोद्भव पिनाकिनः ।

ऋणार्थस्त्वां प्रपन्नोऽस्मि गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।