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Chaitra Navratri 2024 Day 3: मां चंद्रघंटा की पूजा इस आरती के बिना है अधूरी, सभी मुरादें होंगी पूरी

हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्र का बेहद खास महत्व है। इस बार 09 अप्रैल से चैत्र नवरात्र की शुरुआत हुई है और 17 अप्रैल को समाप्त होंगे। मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा-व्रत करने से साधक को जीवन में आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है। मां चंद्रघंटा की आरती करने से सभी मनोकामनाएं को पूर्ण होती हैं और पूजा सफल होती है। चलिए पढ़ते हैं मां की आरती।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Thu, 11 Apr 2024 06:15 AM (IST)
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Chaitra Navratri 2024 Day 3: मां चंद्रघंटा की पूजा इस आरती के बिना है अधूरी

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chaitra Navratri 2024 Day 3 Maa Chandraghanta Aarti: हिंदू त्योहारों में नवरात्र का अधिक महत्व है। हिंदू नववर्ष के साथ चैत्र नवरात्र की शुरुआत हो गई है। इस दौरान मां के अलग-अलग स्वरूपों की विशेष पूजा की जाती है। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा और व्रत करने का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां चंद्रघंटा की विधिपूर्वक पूजा और व्रत करने से साधक को जीवन में आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है। मां चंद्रघंटा की आरती करने से सभी मनोकामनाएं को पूर्ण होती हैं और पूजा सफल होती है, तो आइए मां की आरती और स्तोत्र पढ़ते हैं।

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मां चंद्रघंटा आरती लिरिक्स (Maa Chandraghanta Aarti Lyrics)

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम

पूर्ण कीजो मेरे काम

चंद्र समान तू शीतल दातीचंद्र तेज किरणों में समाती

क्रोध को शांत बनाने वाली

मीठे बोल सिखाने वाली

मन की मालक मन भाती हो

चंद्र घंटा तुम वरदाती हो

सुंदर भाव को लाने वाली

हर संकट मे बचाने वाली

हर बुधवार जो तुझे ध्याये

श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय

मूर्ति चंद्र आकार बनाएं

सन्मुख घी की ज्योत जलाएं

शीश झुका कहे मन की बाता

पूर्ण आस करो जगदाता

कांची पुर स्थान तुम्हारा

करनाटिका में मान तुम्हारा

नाम तेरा रटू महारानी

'भक्त' की रक्षा करो भवानी

मां चन्द्रघंटा का स्तोत्र (Maa Chandraghanta Stotram)

ध्यान वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम।

सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्घ

कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम।

खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्घ

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम।

मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्घ

प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम।

कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्घ

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