Devshayani Ekadashi 2024: इन मंत्रों के जप से करें भगवान विष्णु को प्रसन्न, आर्थिक तंगी से मिलेगी निजात
सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। इस तिथि पर साधक विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 04 Jul 2024 01:47 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Devshayani Ekadashi 2024: हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन देव देवशयनी एकादशी मनाई जाती है। इस दिन से जगत के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं। वहीं, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जागृत होते हैं। इस तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। देवशयनी एकादशी तिथि से लेकर देवउठनी एकादशी तक की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान सभी प्रकार के मांगलिक कार्य नही किए जाते हैं।
अतः सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की पूजा उपासना की जाती है। साथ ही एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। अगर आप भी देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करना चाहते हैं और उनकी कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो देवशयनी एकादशी पर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।
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1. मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी ।नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।2. महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी ।आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते ।
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः ।नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।3. तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया ।।लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया ।।4. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥5. मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥6. जीवश्चाङ्गिर-गोत्रतोत्तरमुखो दीर्घोत्तरा संस्थित:पीतोश्वत्थ-समिद्ध-सिन्धुजनिश्चापो थ मीनाधिप:।सूर्येन्दु-क्षितिज-प्रियो बुध-सितौ शत्रूसमाश्चापरेसप्ताङ्कद्विभव: शुभ: सुरुगुरु: कुर्यात् सदा मङ्गलम्।।
7. दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।8. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।9. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ।10. ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।
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