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Ganesh Chaturthi 2024: भगवान गणेश की पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम

ज्योतिषियों की मानें तो गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2024) पर भद्रावास का शुभ संयोग बन रहा है। इसके साथ ही कई अन्य मंगलकारी शुभ योग बन रहे हैं। इन योग में भगवान गणेश की पूजा करने से आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही भगवान गणेश की कृपा साधक पर बरसती है। इस शुभ अवसर पर साधक भक्ति भाव से गणपति जी की पूजा करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 03 Sep 2024 02:03 PM (IST)
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Lord Ganesh Mantra: भगवान गणेश को कैसे प्रसन्न करें ?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, 07 सितंबर को गणेश चतुर्थी है। यह पर्व हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त प्रतिमा स्थापना एवं पूजन होने तक व्रत रखते हैं। भगवान गणेश की पूजा करने से आय, सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही धन संबंधी परेशानी दूर हो जाती है। अगर आप भी गणपति बप्पा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो गणेश चतुर्थी के दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों (Ganesh Chaturthi 2024 Mantra) का जप करें।

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गणोश मंत्र (Ganesh Chaturthi 2024 Mantra Vidhi)

1. ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।

निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

2. ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

ॐ महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

ॐ गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

3. ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा॥

4. दन्ताभये चक्रवरौ दधानं, कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।

धृताब्जयालिङ्गितमाब्धि पुत्र्या-लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे॥

5. ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्॥

6. ॐ नमो ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्लीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी मम गृहे धनं देही चिन्तां दूरं करोति स्वाहा ॥

7. ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।

8. ॐ श्रीम गम सौभाग्य गणपतये

वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥

9. ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

10. गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।

द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥

विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।

द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌ ॥

विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌ ।

॥ श्री गणपति स्तोत्रम् ॥

जेतुं यस्त्रिपुरं हरेणहरिणा व्याजाद्बलिं बध्नता

स्रष्टुं वारिभवोद्भवेनभुवनं शेषेण धर्तुं धराम्।

पार्वत्या महिषासुरप्रमथनेसिद्धाधिपैः सिद्धये

ध्यातः पञ्चशरेण विश्वजितयेपायात्स नागाननः॥

विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणि-र्विघ्नाटवीहव्यवाड्

विघ्नव्यालकुलाभिमानगरुडोविघ्नेभपञ्चाननः।

विघ्नोत्तुङ्गगिरिप्रभेदन-पविर्विघ्नाम्बुधेर्वाडवो

विघ्नाघौधघनप्रचण्डपवनोविघ्नेश्वरः पातु नः॥

खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनंलम्बोदरं सुन्दरं

प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धम-धुपव्यालोलगण्डस्थलम्।

दन्ताघातविदारितारिरुधिरैःसिन्दूरशोभाकरं

वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिंसिद्धिप्रदं कामदम्॥

गजाननाय महसेप्रत्यूहतिमिरच्छिदे।

अपारकरुणा-पूरतरङ्गितदृशे नमः॥

अगजाननपद्मार्कंगजाननमहर्निशम्।

अनेकदन्तं भक्तानामेक-दन्तमुपास्महे॥

श्वेताङ्गं श्वेतवस्त्रं सितकु-सुमगणैः पूजितं श्वेतगन्धैः

क्षीराब्धौ रत्नदीपैः सुरनर-तिलकं रत्नसिंहासनस्थम्।

दोर्भिः पाशाङ्कुशाब्जा-भयवरमनसं चन्द्रमौलिं त्रिनेत्रं

ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं गणपति-ममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम्॥

आवाहये तं गणराजदेवंरक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्यम्।

विघ्नान्तकं विघ्नहरं गणेशंभजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया॥

यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्तिपरं प्रधानं पुरुषं तथान्ये।

विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरं वातस्मै नमो विघ्नविनाशनाय॥

विघ्नेश वीर्याणि विचित्रकाणिवन्दीजनैर्मागधकैः स्मृतानि।

श्रुत्वा समुत्तिष्ठ गजानन त्वंब्राह्मे जगन्मङ्गलकं कुरुष्व॥

गणेश हेरम्ब गजाननेतिमहोदर स्वानुभवप्रकाशिन्।

वरिष्ठ सिद्धिप्रिय बुद्धिनाथवदन्त एवं त्यजत प्रभीतीः॥

अनेकविघ्नान्तक वक्रतुण्डस्वसंज्ञवासिंश्च चतुर्भुजेति।

कवीश देवान्तकनाशकारिन्वदन्त एवं त्यजत प्रभीतीः॥

अनन्तचिद्रूपमयं गणेशंह्यभेदभेदादिविहीनमाद्यम्।

हृदि प्रकाशस्य धरं स्वधीस्थंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥

विश्वादिभूतं हृदि योगिनां वैप्रत्यक्षरूपेण विभान्तमेकम्।

सदा निरालम्बसमाधिगम्यंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥

यदीयवीर्येण समर्थभूता मायातया संरचितं च विश्वम्।

नागात्मकं ह्यात्मतया प्रतीतंतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥

सर्वान्तरे संस्थितमेकमूढंयदाज्ञया सर्वमिदं विभाति।

अनन्तरूपं हृदि बोधकं वैतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥

यं योगिनो योगबलेन साध्यंकुर्वन्ति तं कः स्तवनेन नौति।

अतः प्रणामेन सुसिद्धिदोऽस्तुतमेकदन्तं शरणम् व्रजामः॥

देवेन्द्रमौलिमन्दार-मकरन्दकणारुणाः।

विघ्नान् हरन्तुहेरम्बचरणाम्बुजरेणवः॥

एकदन्तं महाकायंलम्बोदरगजाननम्।

विघ्ननाशकरं देवंहेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥

यदक्षरं पदं भ्रष्टंमात्राहीनं च यद्भवेत्।

तत्सर्वं क्षम्यतां देवप्रसीद परमेश्वर॥

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