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Vat Purnima Vrat 2024: वट पूर्णिमा व्रत पर पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, अखंड सुहाग का प्राप्त होगा वरदान

धार्मिक मत है कि वट पूर्णिमा व्रत करने से व्रती को वट सावित्री व्रत के समान फल प्राप्त होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। इस उपलक्ष्य पर महिलाएं स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इस समय वट वृक्ष में जल का अर्घ्य देती हैं। साथ ही बरगद के पेड़ में रक्षा सूत्र बांधती हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 20 Jun 2024 06:18 PM (IST)
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Vat Purnima Vrat 2024: ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत का धार्मिक महत्व
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Aaj ka Panchang 21 June 2024: हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि पर वट पूर्णिमा व्रत मनाया जाता है। यह पर्व वट सावित्री व्रत के समतुल्य होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। अविवाहित लड़कियां भी शीघ्र विवाह के लिए वट सावित्री व्रत के दिन वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से विवाहित महिलाओं के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। अगर आप भी धर्मराज की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो वट पूर्णिमा व्रत पर विधि-विधान से वट वृक्ष की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।

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1. मम वैधव्यादि-सकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं

सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये ।'

2. अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।

पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।

तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।

3. वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः ।

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले ।

तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा ॥

4. ऊँ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:।

5. नमस्ते सर्वगेवानां वरदासि हरे: प्रिया।

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां या सा मे भूयात्वदर्चनात्।।

धर्मराज आरती

ॐ जय जय धर्म धुरन्धर, जय लोकत्राता ।

धर्मराज प्रभु तुम ही, हो हरिहर धाता ॥

जय देव दण्ड पाणिधर यम तुम, पापी जन कारण ।

सुकृति हेतु हो पर तुम, वैतरणी ताराण ॥

न्याय विभाग अध्यक्ष हो, नीयत स्वामी ।

पाप पुण्य के ज्ञाता, तुम अन्तर्यामी ॥

दिव्य दृष्टि से सबके,पाप पुण्य लखते ।

चित्रगुप्त द्वारा तुम, लेखा सब रखते ॥

छात्र पात्र वस्त्रान्न क्षिति, शय्याबानी।

तब कृपया, पाते हैं, सम्पत्ति मनमानी॥

द्विज, कन्या, तुलसी, का करवाते परिणय ।

वंशवृद्धि तुम उनकी, करते नि:संशय ॥

दानोद्यापन-याजन, तुष्ट दयासिन्धु ।

मृत्यु अनन्तर तुम ही, हो केवल बन्धु ॥

धर्मराज प्रभु, अब तुम दया ह्रदय धारो ।

जगत सिन्धु से स्वामिन, सेवक को तारो ॥

धर्मराज जी की आरती, जो कोई नर गावे ।

धरणी पर सुख पाके, मनवांछित फल पावे॥

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।