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Anant Chaturdashi 2024: अनंत चतुर्दशी पर करें इन मंगलकारी मंत्रों का जप, दूर हो जाएंगे सभी कष्ट

धार्मिक मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi 2024) तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। इस शुभ अवसर पर भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा के बाद रक्षा सूत्र बांधा जाता है। धार्मिक मत है कि रक्षा सूत्र बांधने से जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 16 Sep 2024 06:07 PM (IST)
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Anant Chaturdashi 2024: अनंत चतुर्दशी का धार्मिक महत्व

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के अगले दिन अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi 2024) मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही भगवान अनंत की पूजा होने तक व्रत रखा जाता है। धार्मिक मत है कि भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। इसके साथ ही साधक को पृथ्वी लोक पर सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। इस शुभ अवसर पर गणेश विसर्जन भी किया जाता है। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो अनंत चतुर्दशी तिथि पर विधि-विधान से लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।

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भगवान विष्ण के मंत्र

1. अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।

अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

2. कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।

प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।

3. तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया ।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया ।।

4. श्री विष्णु स्तोत्र

किं नु नाम सहस्त्राणि जपते च पुन: पुन: ।

यानि नामानि दिव्यानि तानि चाचक्ष्व केशव: ।।

मत्स्यं कूर्मं वराहं च वामनं च जनार्दनम् ।

गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं माधवं मधुसूदनम् ।।

पदनाभं सहस्त्राक्षं वनमालिं हलायुधम् ।

गोवर्धनं ऋषीकेशं वैकुण्ठं पुरुषोत्तमम् ।।

विश्वरूपं वासुदेवं रामं नारायणं हरिम् ।

दामोदरं श्रीधरं च वेदांग गरुड़ध्वजम् ।।

अनन्तं कृष्णगोपालं जपतो नास्ति पातकम् ।

गवां कोटिप्रदानस्य अश्वमेधशतस्य च ।।

कन्यादानसहस्त्राणां फलं प्राप्नोति मानव:

अमायां वा पौर्णमास्यामेकाद्श्यां तथैव च ।।

संध्याकाले स्मरेन्नित्यं प्रात:काले तथैव च ।

मध्याहने च जपन्नित्यं सर्वपापै: प्रमुच्यते ।।

5. वृंदा, वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |

पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।

एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |

य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।

6. महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी ।

आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते ।

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः !

नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

7.

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा ।

बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।

करोमि यद्यत्सकलं परस्मै ।

नारायणयेति समर्पयामि ॥

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा

बुद्ध्यात्मना वानुसृतस्वभावात् ।

करोति यद्यत्सकलं परस्मै

नारायणयेति समर्पयेत्तत् ॥

8. ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥

9. ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्।।

10. शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम

लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं।

वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।

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