Dev Diwali 2022: काशी की देव दीपावली का भगवान शिव से है सीधा संबंध, जानिए इससे जुड़ी कथा
2022 Dev Diwali Varanasi हजारों दीपों की जगमगाहट के साथ काशी में देव दीपावली की तैयारियां जोरों-शोरों पर हैं। यह दिन इंसानों के साथ साथ देवताओं के लिए भी बेहद खास होता है। खबर में पढ़ें क्या है देव दीपावली का भगवान शिव से संबंध-
नई दिल्ली, जेएनएन। Dev Diwali 2022, Kashi: हर साल कार्तिक पूर्णिमा तिथि को भगवान भोले शंकर की नगरी वाराणसी के काशी में देव दीपावली का महापर्व होता है। दीयों की रोशनी से जगमाता दिवाली का पर्व खुशियां मनाने का प्रतीक माना जाता है। वहीं दिवाली के ठीक 15 दिन बाद देव दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। देव दीपावली को कार्तिक पूर्णिमा भी कहा जाता है। काशी की देव दीपावली के इस महापर्व का भगवान शिव से सीधा संबंध होता है। आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी-
शिव की नगरी द्वीपों की जगमगाहट
शिव की नगरी काशी में महोत्सव की भांति मनाई जाने वाली देव दीपावली मुख्य रूप से शिव को समर्पित होती है। इस दिन गंगा घाट, गली मोहल्ले और शहर दीए की रोशनी में सरोबार होते हैं। जहां भी नजरें जाती हैं वहां दीयों की जगमगाहट नजर आती है। वहीं संध्या के समय परंपरागत गंगा आरती होती है और लोग घाटों और सरोवरों के तट को सुंदर दीपों से रोशन करते हैं। इसके अलावा, लोग अपने घर को दीए और रंगोली से सजाते हैं।
काशी में ही देव दिवाली क्यों मनाई जाती है?
इस साल कार्तिक पूर्णिमा का दिन 8 नवंबर, मंगलवार को पड़ रहा है। सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता स्वर्ग लोक से नीचे धरती पर आते हैं। यही नहीं सभी देवतागण गंगा स्नान कर दीपोत्सव का हिस्सा भी बनते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस का संघार कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। त्रिपुरासुर द्वारा चारों तरफ मचाई गई तबाही उसके वध के बाद शांति में बदल गई, जिसका जश्न देवताओं ने भी मनाया।
तभी से त्रिपुरासुर के अत्याचारों से मिली मुक्ति और भगवान शिव के इस कृत्य पर सभी देवता अपनी प्रसन्नता जाहिर करने के लिए भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचकर दीप प्रज्वलित करते हैं और खुशियां मनाते हैं।
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