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Dev Uthani Ekadashi 2023: साल 2023 में कब है देवउठनी एकादशी? जानें- शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व

Dev Uthani Ekadashi 2023 पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर को देर रात 11 बजकर 03 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 23 नवंबर को 09 बजकर 01 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 23 नवंबर को देव उठनी एकादशी मनाई जाएगी। साधक 23 नवंबर को व्रत रख सकते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 09 Oct 2023 09:20 AM (IST)
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Dev Uthani Ekadashi 2023: साल 2023 में कब है देवउठनी एकादशी? जानें- शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क | Dev Uthani Ekadashi 2023: हर वर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। तदनुसार, इस वर्ष 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि देव उठनी एकादशी तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु नींद से जागृत होते हैं। इससे पूर्व देवशयनी एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने जाते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि देव उठनी एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। आइए, देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि जानते हैं-

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शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर को देर रात 11 बजकर 03 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 23 नवंबर को 09 बजकर 01 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 23 नवंबर को देव उठनी एकादशी मनाई जाएगी। साधक 23 नवंबर को व्रत रख सकते हैं।

पारण का समय

साधक 11 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 51 मिनट से लेकर 08 बजकर 57 मिनट के मध्य पारण कर सकते हैं। इस समय ब्राह्मणों एवं जरूरतमंदों को दान अवश्य दें।

पूजा विधि

देव उठनी एकादशी तिथि पर ब्रह्म बेला में उठें। इस समय जगत के पालनहार भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। दैनिक कार्यों से निवृत होने के पश्चात गंगाजल युक्त से स्नान-ध्यान करें। अब आचमन कर व्रत संकल्प लें। इसके बाद सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। पूजा के समय पीले वस्त्र धारण करें। सूर्य देव को जल का अर्घ्य देने के बाद पंचोपचार कर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करें। भगवान को पीले रंग का फल, बेसन के लड्डू, केसर मिश्रित खीर, केले आदि चीजें भोग में अर्पित करें। इस समय विष्णु चालीसा का पाठ, स्तोत्र, स्तुति का पाठ और मंत्र जाप करें। पूजा के अंत में आरती कर सुख, समृद्धि और धन वृद्धि की कामना करें। दिनभर उपवास रखें। संध्याकाल में आरती कर फलाहार करें। अगले दिन पंचांग द्वारा निर्धारित समय पर व्रत खोलें।

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।