धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कार्तिक माह की अमावस्या तिथि धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित है। इस दिन प्रकाश का त्योहार
दीवाली मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर धन की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इसके साथ ही धन के देवता कुबेर देव की भी दीवाली के दिन उपासना की जाती है। कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य एवं धन में वृद्धि होती है। अगर आप भी धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो आज दीवाली के दिन भक्ति भाव से लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा करें। इसके साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।
1. ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥2. ॐ ऐं श्रीं महालक्ष्म्यै कमल धारिण्यै गरूड़ वाहिन्यै श्रीं ऐं नमः
3. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।4. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ।
5. ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।6. ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः।मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।।7. ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
शुक्र देव मंत्र
1. ऊँ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत क्षत्रं पय: सेमं प्रजापति: ।
2. ऊँ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम ।।3. ॐ भृगुराजाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि तन्नो शुक्र प्रचोदयात् ।।4. ॐ नमो अर्हते भगवते श्रीमते पुष्पदंत तीर्थंकराय।अजितयक्ष महाकालियक्षी सहिताय ॐ आं क्रों ह्रीं ह्र:।।5. ऊँ शुं शुक्राय नम:
कुबेर मंत्र
1. ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये।
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥2. ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
धनदा लक्ष्मी स्तोत्र (Dhanadalakshmi Stotram)
॥ धनदा उवाच ॥देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्॥1॥॥ देव्युवाच ॥ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।
दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्॥॥ शिव उवाच ॥पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया॥स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम्॥धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम॥पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता॥
भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम्॥धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम्॥धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम्॥रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि॥आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके।
दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते॥समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने॥चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते॥हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने॥क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये॥
प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके॥कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते॥धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे॥स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे॥पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।
श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः॥सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः॥
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