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Ganesha Pancharatnam: सभी कामों में पाना चाहते हैं सिद्धि, तो बुधवार के दिन जरूर करें ये स्तुति

Ganesha Pancharatnam धार्मिक मान्यता है कि गणेश जी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी दुःख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही सुख समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। इसके लिए बुधवार के दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 25 Apr 2023 10:09 AM (IST)
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Ganesha Pancharatnam: सभी कामों में पाना चाहते हैं सिद्धि, तो बुधवार के दिन जरूर करें ये स्तुति

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Ganesha Pancharatnam: बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है। इस दिन गणेश जी की पूजा उपासना करने का विधान है। भगवान गणेश को कई नामों से संबोधित किया जाता है। इनमें एक नाम विघ्नहर्ता है। हिंदी में विघ्नहर्ता का अर्थ दुखों को हरने वाला होता है। अतः जीवन में दुखों से मुक्ति पाने के लिए भगवान गणेश की स्तुति करनी चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि गणेश जी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी दुःख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही सुख, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। इसके लिए बुधवार के दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। वहीं, पूजा के समय उन्हें मोदक और दूर्वा अवश्य भेंट करें। अगर आप भी सभी कामों में सिद्धि पाना चाहते हैं, तो पूजा के समय ये स्तुति जरूर करें-

श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र!

मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं

कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।

अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं

नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं

नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।

सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं

महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥

समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं

दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।

कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं

मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥

अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं

पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।

प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्

कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥

नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं

अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।

हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां

तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥

महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं

प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।

अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां

समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

गणेश स्तोत्र:

प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।

भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥

प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।

तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥

लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।

सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥

नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।

संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥7॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥

॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

संतान गणपति स्तोत्र

नमोऽस्तु गणनाथाय सिद्धी बुद्धि युताय च।

सर्वप्रदाय देवाय पुत्र वृद्धि प्रदाय च।।

गुरु दराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते।

गोप्याय गोपिताशेष भुवनाय चिदात्मने।।

विश्व मूलाय भव्याय विश्वसृष्टि करायते।

नमो नमस्ते सत्याय सत्य पूर्णाय शुण्डिने।।

एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नम:।

प्रपन्न जन पालाय प्रणतार्ति विनाशिने।।

शरणं भव देवेश सन्तति सुदृढ़ां कुरु।

भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गण नायक।।

ते सर्वे तव पूजार्थम विरता: स्यु:रवरो मत:।

पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्व सिद्धि प्रदायकम्।।

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