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Lakshmi Narasimha Stotram: आज पूजा के समय जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ, सभी संकटों से निश्चित ही मिलेगी मुक्ति

Lakshmi Narasimha Stotram सनातन शास्त्रों में निहित है कि धन की देवी मां लक्ष्मी बेहद चंचल हैं। एक स्थान पर ज्यादा देर तक नहीं ठहरती या रूकती है। अतः सुख-दुख का अनुक्रम व्यक्ति के जीवन में चलता रहता है। शुक्रवार के दिन लक्ष्मी वैभव व्रत रखने से साधक पर मां की विशेष कृपा बरसती है। उनकी कृपा से साधक को सुख सौभाग्य धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Fri, 08 Sep 2023 09:00 AM (IST)
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Lakshmi Narasimha Stotram: आज पूजा के समय जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ, सभी संकटों से निश्चित ही मिलेगी मुक्ति
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Lakshmi Narasimha Stotram: सनातन धर्म में शुक्रवार का दिन धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही लक्ष्मी वैभव व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं। सनातन शास्त्रों में निहित है कि धन की देवी मां लक्ष्मी बेहद चंचल हैं। एक स्थान पर ज्यादा देर तक नहीं ठहरती या रूकती है। अतः सुख-दुख का अनुक्रम व्यक्ति के जीवन में चलता रहता है।

धार्मिक मान्यता है कि शुक्रवार के दिन लक्ष्मी वैभव व्रत रखने से साधक पर मां की विशेष कृपा बरसती है। उनकी कृपा से साधक को सुख, सौभाग्य, धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। साथ ही मान-सम्मान, यश और कीर्ति में वृद्धि होती है। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त दुख और संकट से निजात पाना चाहते हैं, तो आज यानी शुक्रवार के दिन पूजा के समय नृसिंह स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। आइए, नृसिंह स्तोत्र का पाठ करें-

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श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र

श्रीमत् पयोनिधिनिकेतन चक्रपाणे भोगीन्द्रभोगमणिरञ्जितपुण्यमूर्तो ।

योगीश शाश्वत शरण्य भवाब्धिपोत लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

ब्रह्मेन्द्ररुद्रमरुदर्ककिरीटकोटि सङ्घट्टिताङ्घ्रिकमलामलकान्तिकान्त ।

लक्ष्मीलसत्कुच्सरोरुहराजहंस लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

संसारघोरगहने चरतो मुरारे मारोग्रभीकरमृगप्रवरार्दितस्य ।

आर्तस्यमत्सरनिदाघनिपीडितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

संसारकूपमतिघोरमगाधमूलम् संप्राप्य दुःखशतसर्पसमाकुलस्य ।

दीनस्य देव कृपणापदमागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

संसारसागरविशालकरालकाल नक्रग्रहग्रसननिग्रह विग्रहस्य ।

व्यग्रस्य रागरसनोर्मिनिपीडितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

संसारवृक्षमघबीजमनन्तकर्म शाखाशतं करणपत्रमनङ्गपुष्पम् ।

आरुह्यदुःखफलितं पततो दयालो लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

संसारसर्पघनवक्त्रभयोग्रतीव्र दंष्ट्राकरालविषदग्द्धविनष्टमूर्ते:।

नागारिवाहन सुधाब्धिनिवास शौरे लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

संसारदावदहनातुरभीकरोरु ज्वालावलीभिरतिदग्धतनूरुहस्य ।

त्वत्पादपद्मसरसीशरणागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

संसारजालपतितस्य जगन्निवास सर्वेन्द्रियार्थबडिशार्थझषोपमस्य ।

प्रोत्खण्डितप्रचुरतालुकमस्तकस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

संसारभीकरकरीन्द्रकराभिघात निष्पिष्टमर्म वपुषः सकलार्तिनाश ।

प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

अन्धस्य मे हृतविवॆकमहाधनस्य चोरैः प्रभो बलिभिरिन्द्रियनामधेयैः ।

मोहांधकारकुहरे विनिपातितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

लक्ष्मीपते कमलनाभ सुरेश विष्णो वैकुण्ठ कृष्ण मधुसूदन पुष्कराक्ष ।

ब्रह्मण्य केशव जनार्दन वासुदेव देवेश देहि कृपणस्य करावलम्बम् ॥

यन्माययोजितवपुः प्रचुरप्रवाह मग्नार्थमत्र निवहोरुकरावलम्बम् ।

लक्ष्मीनृसिंहचरणाब्जमधुव्रतेन स्तोत्रं कृतं सुखकरं भुवि शंकरेण ॥

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