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Surya Stuti: रथ सप्तमी के दिन पूजा के समय जरूर करें ये स्तुति, हर मुराद जल्द होगी पूरी

Surya Stuti धार्मिक मान्यता है कि सूर्य देव की उपासना करने से पद- प्रतिष्ठा मान-सम्मान यश कीर्ति और धन की प्राप्ति होती है। ज्योतिष भी करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता पाने के लिए सूर्य उपासना की सलाह देते हैं। अगर आप भी मनचाही नौकरी या कारोबार में उन्नति पाना चाहते हैं तो रविवार के दिन पूजा के समय सूर्य स्तुति अवश्य करें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 09 Jul 2023 09:47 AM (IST)
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Surya Stuti: रथ सप्तमी के दिन पूजा के समय जरूर करें ये स्तुति, हर मुराद जल्द होगी पूरी
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क | Surya Stuti: आज सावन माह की रथ सप्तमी है। यह पर्व हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना की जाती है। रथ सप्तमी को अचला सप्तमी, भानु सप्तमी और आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है। साधक करियर और कारोबार में तरक्की और उन्नति के लिए रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव के निमित्त व्रत-उपवास रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि सूर्य देव की उपासना करने से पद- प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, यश, कीर्ति और धन की प्राप्ति होती है। ज्योतिष भी करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता पाने के लिए सूर्य उपासना की सलाह देते हैं। इससे कुंडली में सूर्य मजबूत होता है। कुंडली में सर्य मजबूत होने से जातक का भविष्य स्वर्णिम रहता है। साथ ही सरकारी नौकरी प्राप्त होने के प्रबल योग बनते हैं। अगर आप भी मनचाही नौकरी या कारोबार में उन्नति पाना चाहते हैं, तो रविवार के दिन पूजा के समय सूर्य स्तुति अवश्य करें। इस स्तुति के पाठ से आय और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है। साथ ही करियर और कारोबार में तरक्की और उन्नति मिलती है। आइए, सूर्य स्तुति करें-

सूर्य स्तोत्र

प्रातः स्मरामि तत्सवितुर्वरेण्यं,

रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि।

सामानि यस्य किरणाः प्रभवादि हेतुं,

ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम् ॥

प्रातर्नमामि तरणिं तनुवाङ्मनोभि-,

र्ब्रह्मेन्द्रपूर्वकसुरैर्नुतमर्चितं च।

वृष्टिप्रमोचनविनिग्रहहेतुभूतं,

त्रैलोक्यपालनपरं त्रिगुणात्मकं च ॥

प्रातर्भजामि सवितारमनन्तशक्तिं,

पापौघशत्रुभयरोगहरं परं च।

तं सर्वलोककलनात्मककालमूर्तिं,

गोकण्ठबन्धनविमोचनमादिदेवम् ॥

श्लोकत्रयमिदं भानोः प्रातःकाले पठेत्तु यः।

स सर्वव्याधिविनिर्मुक्तः परं सुखमवाप्नुयात् ॥

सूर्य स्तुति

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन ।।

त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।

दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सुर-मुनि-भूसुर-वन्दित, विमल विभवशाली।

अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी।

विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।

सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।

वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।

हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'