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Sri Krishna Stuti: बुधवार के दिन पूजा के समय करें ये स्तुति, घर आएगी सुख और समृद्धि

Sri Krishna Stuti भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से साधक को पृथ्वी पर स्वर्ग लोक समान सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट भी दूर हो जाते हैं। अतः साधक नियमित रूप से कृष्ण की उपासना करते हैं। अगर आप भी सुख समृद्धि और शांति पाना चाहते हैं तो बुधवार के दिन कृष्ण जी की स्तुति अवश्य करें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 22 Aug 2023 06:30 PM (IST)
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Sri Krishna Stuti: बुधवार के दिन पूजा के समय करें ये स्तुति, घर आएगी सुख और समृद्धि

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Sri Krishna Stuti: सनातन धर्म में बुधवार के दिन जगत के पालहार भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की श्रद्धा भाव से पूजा-उपासना की जाती है। साधक विशेष कार्यों में सिद्धि प्राप्ति हेतु बुधवार के दिन व्रत उपवास भी रखते हैं। इस दिन देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से साधक को पृथ्वी पर स्वर्ग लोक समान सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट भी दूर हो जाते हैं। अतः साधक नियमित रूप से कृष्ण की उपासना करते हैं। अगर आप भी सुख, समृद्धि और शांति पाना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन पूजा के समय कृष्ण जी की स्तुति अवश्य करें। आप चाहे तो रोजाना भी कृष्ण जी की स्तुति कर सकते है। आइए, कृष्ण स्तुति करते हैं-

कृष्ण स्तुति

कृष्ण कृष्ण शृणुष्वेदं यदर्थमहमागतः।

त्वत्समीपं महाबाहो नैतच्चिन्त्यं त्वयान्यथा॥

भारावतरणार्थाय पृथिव्याः पृथिवीतले।

अवतीर्णॊऽखिलाधार त्वमेव परमेश्वर ॥

मखभंगविरोधेन मया गोकुलनाशकाः।

समादिष्टा महामेघास्तैश्चेदं कदनं कृतम्॥

त्रातास्ताश्च त्वया गावस्समुत्पाट्य महीधरम्।

तेनाहं तोषितो वीरकर्मणात्यद्भुतेन ते ॥

साधितं कृष्ण देवानामहं मन्ये प्रयोजनम्।

त्वयायमद्रिप्रवरः करेणैकेन यद्धृतः॥

गोभिश्च चोदितः कृष्ण त्वत्सकाशमिहागतः।

त्वया त्राताभिरत्यर्थं युष्मत्सत्कारकारणात् ॥

स त्वां कृष्णाभिषेक्ष्यामि गवां वाक्यप्रचोदितः।

उपेन्द्रत्वे गवामिन्द्रो गोविन्दस्त्वं भविष्यसि ॥

अथोपवाह्यादादाय घण्टामैरावताद्गजात्।

अभिषेकं तया चक्रे पवित्रजलपूर्णया ॥

क्रियमाणेऽभिषेके तु गावः कृष्णस्य तत्क्षणात्।

प्रस्रवोद्भूतदुग्धार्द्रां सद्यश्चक्रुर्वसुन्धराम् ॥

अभिषिच्य गवां वाक्यादुपेन्द्रं वै जनार्दनम्।

प्रीत्या सप्रश्रयं वाक्यं पुनराह शचीपतिः ॥

गवामेतत्कृतं वाक्यं तथान्यदपि मे शृणु।

यद्ब्रवीमि महाभाग भारावतरणेच्छया ॥

ममांशः पुरुषव्याघ्र पृथिव्यां पृथिवीधरः।

अवतीर्योऽर्जुनो नाम संरक्ष्यो भवता सदा ॥

भारावतरणे साह्यं स ते वीरः करिषयति।

संरक्षणीयो भवता यथात्मा मधुसूदन ॥

कृष्ण कृष्ण शृणुष्वेदं यदर्थमहमागतः।

त्वत्समीपं महाबाहो नैतच्चिन्त्यं त्वयान्यथा॥

दामोदर अष्टकम

नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं

लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानं

यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं

परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या ॥

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तम्

कराम्भोज-युग्मेन सातङ्क-नेत्रम्

मुहुः श्वास-कम्प-त्रिरेखाङ्क-कण्ठ

स्थित-ग्रैवं दामोदरं भक्ति-बद्धम् ॥

इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे

स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्

तदीयेशितज्ञेषु भक्तिर्जितत्वम

पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥

वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा

न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह

इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं

सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः ॥

इदं ते मुखाम्भोजम् अत्यन्त-नीलैः

वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गोप्या

मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे

मनस्याविरास्तामलं लक्षलाभैः ॥

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो

प्रसीद प्रभो दुःख-जालाब्धि-मग्नम्

कृपा-दृष्टि-वृष्ट्याति-दीनं बतानु

गृहाणेष मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः ॥

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